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________________ 180 श्राद्धविधि प्रकरणम् स्थान पर 'अर्थचिन्ता करनी' ऐसा आगम नहींकहता। कारण कि, मनुष्यमात्र अनादिकाल की परिग्रह संज्ञा से अपनी इच्छा से ही अर्थचिन्ता करता है। केवलिभाषित आगम ऐसे सावधव्यापार में जीवों की प्रवृत्ति किसलिए करावे? अनादिकाल की संज्ञा से सुश्रावक को अचिन्ता करनी पड़े, तो उसको इस रीति से करनी चाहिए कि धर्मआदि को बाधा न आवे, इतनी ही आगम की आज्ञा है। "इहलोइअंमि कज्जे, सव्वारंभेण जह जणो जयइ। तह जइ लक्खंसेण वि, धम्मे ता किं न पज्जत्तं ॥१॥" लोग जिस तरह संसार संबंधी कार्य में सर्व आरंभपूर्वक अहोरात्रि उद्यम करते हैं, उसका एक लाखवां अंश तुल्य भी उद्यम धर्म में करे, तो क्या प्राप्त करना बाकी रहे? मनुष्य की आजीविका १ व्यापार, २ विद्या, ३ खेती, ४ गाय, बकरी आदि पशु की रक्षा, ५ कलाकौशल, ६ सेवा और ७ भिक्षा इन सात उपायों से होती है। जिसमें वणिग् लोग व्यापार से वैद्यआदि लोग अपनी विद्या से, कुनबी लोग कृषि से, ग्वाल गड़रिये गाय आदि के रक्षण से, चित्रकार सुतार आदि अपनी कारीगरी से, सेवक लोग सेवा से और भिखारी लोग भिक्षा से अपनी आजीविका करते हैं। उसमें धान्य, घृत, तैल, कपास, सूत,कपड़ा, तांबा, पीतल आदि धातु, मोती,जवाहरात, नाणां (रुपया पैसा) आदि किराने के भेद से अनेक प्रकार के व्यापार हैं। लोक में प्रसिद्ध है कि, 'तीन सो साठ किराने हैं भेद प्रभेद गिनने लगें तो व्यापार की संख्या का पार ही नहीं आ सकता। व्याज से उधार देना, यह भी व्यापार में ही समाता है। __ औषधि, रस, रसायन, चूर्ण, अंजन, वास्तु, शकुन, निमित्त सामुद्रिक, धर्म, अर्थ, काम, ज्योतिष, तर्क आदि भेद से अनेक प्रकार की विद्याएं हैं। जिसमें वैद्यविद्या और गांधीपन (अत्तारी) ये दो विद्याएं प्रायः बुरा ध्यान होना संभव होने से विशेष गुणकारी नहीं हैं। कोई धनवान् पुरुष रोगी हो जाय अथवा अन्य किसी ऐसे ही प्रसंग पर वैद्य व गांधी को विशेष लाभ होता है, स्थान-स्थान पर आदर होता है। कहा है कि "रोगिणां सुहृदो वैद्याः, प्रभूणां चाटुकारिणः।। मुनयो दुःखदग्धानां, गणकाः क्षीणसंपदाम् ।।१।। पण्यानां गान्धिकं पण्यं, किमन्यैः काञ्चनादिकः?। यत्रकेन गृहीतं यत् तत्सहस्रेण दीयते ॥२॥" शरीर में दुःख होता है तब वैद्य पिता के समान है। तथा रोगी के मित्र वैद्य, राजा मित्र हांजी-हांजी करके मीठे वचन बोलनेवाले, संसारी दुःख से पीडित मनुष्य के त्र मुनिराज और लक्ष्मी खोकर बैठे हुए पुरुषों के मित्र ज्योतिषी होते हैं। सर्व व्यापारों में गांधी ही का व्यापार सरस है। कारण कि, उस व्यापार में एक
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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