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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 179 चाहिए।' इत्यादि नीतिशास्त्र के वचन पर से, स्वयं ने ही पुत्र को दंड देने का निर्णय किया। पश्चात् घोड़ी मंगाकर पुत्र को कहा- 'तू यहां मार्ग में लेट जा' पुत्र भी विनीत था इससे पिता की आज्ञा मानकर मार्ग में लेट गया। राजा ने सेवकों को कहा कि.., 'इसके ऊपर से दौड़ती हुई घोड़ी ले जाओ' परंतु कोई भी ऐसा करने को तैयार नहीं हुआ। तब सब लोगों के मना करते हुए भी राजा स्वयं घोड़ी पर सवार होकर ज्यों ही घोड़ी को दौड़ाकर पुत्र के शरीर पर ले जाने लगा, इतने में ही राज्य की अधिष्ठायिका देवी ने प्रकट हो पुष्पवृष्टि करके कहा कि, 'हे राजन्! मैंने तेरी परीक्षा की थी । प्राण से भी वल्लभ निजपुत्र से भी तुझे न्याय अधिक प्रिय है, इसमें संशय नहीं, अतएव तू चिरकाल तक निर्विघ्न राज्य कर, इत्यादि । अब जो राजा के अधिकारी हैं, वे यदि अभयकुमार, चाणक्य की तरह राजा व प्रजा दोनों के हित के अनुसार राज्य कार्य करें तो उनके काम में धर्म का विरोध नहीं आता है। कहा है कि केवल राजा का ही हित करनेवाला मनुष्य प्रजा का शत्रु होता है, और केवल प्रजा का हित करनेवाला मनुष्य राजा से त्याग दिया जाता है। इस प्रकार एक के हित में दूसरे का अहित समाया हुआ होने से राजा व प्रजा इन दोनों का हित करनेवाला अधिकारी दुर्लभ है। वणिक् आदि लोगों को सच्चा व्यवहार रखना चाहिए, जिससे धर्म को विरोध न आवे (६) ।। यही बात मूल गाथा में कहते हैं। मूलगाथा - ७ ववहारसुद्धिदेसाइविरुद्धचायउचिअचरणेहिं । तो कुइ अत्थचिंतं, निव्वाहिंतो निअं धम्मं ॥७॥ धनार्जन कैसे करना ? : भावार्थः पूर्वकथित धर्मक्रिया कर लेने के अनन्तर, अर्थचिन्ता (धन संपादन करने संबंधी विचार) करना। उसे करते समय तीन बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। एक तो धन आदि प्राप्त करने के साधन-व्यवहार में निर्दोष रखना । अर्थात् व्यवहार में मन, वचन और काया इन तीनों को सरल रखना। कपट न करना, दूसरा जिस देश में रहना, उस देश के लोकविरुद्ध कार्य न करना। तीसरा उचित कार्य अवश्य करना। इन तीनों का विस्तारपूर्वक विवेचन आगे किया जायेगा। उसे ध्यान में रखकर धन की चिन्ता करना । चौथी ध्यान में रखने योग्य आवश्यक बात यह है कि, अपने अंगीकार किये हुए धर्म का तथा ग्रहण किये हुए व्रत का निर्वाह हो परन्तु किसी स्थान में किसी भी प्रकार से उसमें (धर्म व व्रत आदि में) लोभ से अथवा भूल आदि से भी हरकत न आये, ऐसी रीति से धन की चिन्ता करनी । कहा है कि ऐसी कोई भी वस्तु नहीं कि, जो द्रव्य से प्राप्त न हो सके। इसलिए बुद्धिशाली मनुष्य को सर्व प्रकार के प्रयत्न से धन संपादन करना। इस
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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