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श्राद्धविधि प्रकरणम् श्रद्धा न हो तो उसे सम्यग्रीति से क्रिया में प्रवृत्ति नहीं होती। यहां अंगारमर्दक आचार्य का दृष्टान्त समझो, कहा है कि
अज्ञस्य शक्तिरसमर्थविधेर्निबोधस्तौ चारुचेरियममू तुदती न किश्चित्। अन्धाङ्ग्रिहीनहतवाञ्छितमानसानां, दृष्टा न जातु हितवृत्तिरनन्तराया।।१।।
ज्ञान रहित पुरुष की क्रियाशक्ति, क्रिया करने में असमर्थ पुरुष का ज्ञान और मन में श्रद्धा न हो ऐसे पुरुष की क्रियाशक्ति व ज्ञान ये सर्व निष्फल हैं। यहां चलने की शक्तिवाला परन्तु मार्ग से अपरिचित अंधे का, मार्ग से परिचित परन्तु चलने की शक्ति से रहित पंगु का और मार्ग का ज्ञान व चलने की शक्ति होते हुए बुरे मार्ग में जाने के इच्छुक पुरुष का दृष्टान्त घटित होता है। कारण कि, दृष्टान्त में कहे हुए तीनों पुरुष अंतराय रहित किसी स्थान को नहीं जा सकते। इस पर यह सिद्ध हुआ कि ज्ञान, दर्शन
और चारित्र इन तीनों के योग से मोक्ष होता है। अतः ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करने का नित्य प्रयत्न करना, यही तात्पर्य है। सुखशाता पृच्छा :
इसी प्रकार सुश्रावक मुनिराज को संयमयात्रा का निर्वाह पूछे, यथा-'आपकी संयमयात्रा निभती है? आपकी रात्रि सुख से व्यतीत हुई? आपका शरीर निर्बाध है? कोई व्याधि आपको पीड़ा तो नहीं करती? वैद्य का प्रयोजन तो नहीं? औषध आदिका खप नहीं? किसी पथ्य आदि की आवश्यकता तो नहीं?' इत्यादि ऐसे प्रश्न करने से कर्म की भारी निर्जरा होती है। कहा है कि
अभिगमणवंदणनमंसणेण पडिपुच्छणेण साहूणं। चिरसंचिअंपि कम्म, खणेण विरलत्तणमुवेइ ।।१।।
साधुओं के संमुख जाने से, उनको वन्दना तथा नमस्कार करने से, और संयम यात्रा के प्रश्न पूछने से चिरकाल-संचितकर्म भी क्षणमात्र में शिथिलबंधन हो जाते हैं। प्रथम साधुओं को वन्दना करते समय सामान्यतः 'सुहराइ सुहदेवसी आदि शान्ति प्रश्न किया हो तो भी विशेषकर यहां जो प्रश्न करने को कहा, वह प्रश्न का स्वरूप सम्यक् प्रकार से बताने के निमित्त तथा प्रश्न में कहे हुए उपाय के हेतु है, ऐसा समझो इसीलिए यहां साधु मुनिराज के पांव छूकर इस प्रकार प्रकट निमंत्रणा करनासुपात्र दान :
'इच्छकारि भगवन्! पसाय करी प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खादिम, स्वादिम, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पादपोंछनक, प्रातिहार्य पीठ, फलक, सिज्जा (पग चौड़े करके सो सकें वह) संथारा (जिस पर पग चौड़े न हो सकें), औषध (एक वस्तु से बनायी हुई), तथा भैषज (बहुत सी वस्तुएं सम्मिलित करके बनाया हुआ) इनमें से जिस वस्तु का खप हो उसे स्वीकारकर हे भगवन्! मेरे ऊपर अनुग्रह करो। आजकल यह निमंत्रण बृहद्वंदना देने के अनन्तर श्रावक करते हैं। जिसने साधु के साथ प्रतिक्रमण