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श्राद्धविधि प्रकरणम्
जिनप्रतिमा का दर्शन होने पर अंजलि न करना, ३४ जिनपूजा का दर्शन होने पर पूजा न करना, ३५ खराब फूल आदि वस्तु से पूजा करना, ३६ पूजादिक में आदरपूर्वक प्रवृत्ति न रखना, ३७ जिनप्रतिमा के शत्रु का निवारण न करना, ३८ चैत्यद्रव्य का नाशादि की उपेक्षा करना, ३९ शरीर में शक्ति होते हुए भी गाड़ी आदि वाहन में बैठकर जिनमंदिर को आना, ४० प्रथम ही चैत्यवन्दनादिक बोलना, इस प्रकार मध्यम से ४० आशातनाएं
हैं।
१ मंदिर में खेल (खंखार) श्लेष्म (नाक का मल आदि) डालना, २ जूआ आदि खेलना, ३ कलह करना, ४ धनुर्वेदादि कला प्रकट करना, ५ कुल्ला करना, ६ पानसुपारी खाना, ७ पान के कूंचे आदि डालना, ८ अपशब्द बोलना, ९ लघुनीति तथा बड़ीनीति आदि करना, १० शरीर धोना, ११ केस समारना, १२ नख समारना, १३ रुधिर आदि डालना, १४ सेके हुए धान्य, मिठाई आदि खाना, १५ फोड़े फुंसी आदि की चमड़ी डालना, १६ औषधादिक से पित्त का वमन करना, १७ औषधादिक से अन्नादि का वमन करना, १८ औषधादिक से गिरे हुए दांत डालना, १९ पग आदि की चंपी करवाना, २० हाथी, घोड़े आदि पशुओं को बांधना, २१ दांत का, २२ आंख का, २३ नख का, २४ गाल का, २५ नासिका का, २६ मस्तक का, २७ कान का अथवा २८ चमड़ी का मैल जिनमंदिर में डालना, २९ जारण, मारण, उच्चाटन के मंत्र अथवा राजकार्य आदि की सलाह करना, ३० अपने घर के विवाह आदि कृत्य में एकत्रित होने का निश्चय करने के लिए वृद्धपुरुषों को मंदिर में एकत्र करके बिठाना, ३१ हिसाब आदि लिखना, ३२ धन आदि के हिस्से करना, ३३ अपने धन का भंडार (घर की रकम मंदिर की तिजोरी में) वहां स्थापित करना, ३४ पैर पर पैर चढ़ाकर अथवा अविनय हो ऐसी किसी भी रीति से बैठना, ३५ कंडे, ३६ वस्त्र, ३७ दाल, ३८ पापड़, ३९ बड़ी तथा चीवड़े (डोचरे, ककड़ी) आदि वस्तु जिनमंदिर में सूखाने के लिए धूप आदि में रखना, ४० राजादिक के ऋण आदि के भय से गभारे इत्यादि में छिप रहना, ४१ स्त्री, पुत्र आदि के वियोग से रुदन आक्रंद करना, ४२ स्त्री, भोजनादिक अन्न, राजा और देश इन चार के सम्बन्ध में विकथा करना, ४३ बाण, धनुष्य, खड्ग आदि शस्त्र बनाना, ४४ गाय, बैल आदि जानवरों को वहां रखना, ४५ शीत का उपद्रव दूर करने के लिए अग्नि से तापना, ४६ अन्नादिक पकाना, ४७ नाणा (सिक्के) आदि परखना, ४८ यथाविधि निसीहि न करना, ४९ छत्र, ५० जूते, ५१ शस्त्र तथा ५२ चामर इन चार वस्तुओं को मंदिर के बाहर न रखना, ५३ मन की एकाग्रता न करना, ५४ शरीर में तैल आदि लगाना, ५५ सचित्त पुष्पादि का त्याग न करना, ५६ अजीव हार, अंगूठी आदि अचित्त वस्तु बाहर उतारकर शोभाहीन हो मंदिर में घुसना (ऐसा करने से अन्यदर्शनी लोग 'शोभाहीन हो मंदिर में प्रवेश करना यह कैसा भिक्षुक लोगों का धर्म है' ऐसी निन्दा करते हैं। इसलिए हार, मुद्रिकादि न उतारकर अंदर जाना।), ५७ भगवान् को देखने पर हाथ न जोड़ना, ५८ एक साड़ी उत्तरासंग न करना, ५९ मस्तक पर मुकुट धारण करना, ६० सिर पर मुकुट आदि