________________
136
श्राद्धविधि प्रकरणम् नमस्कार कराकर भेट के समान भगवान के सन्मख रख दिया। तब अत्यन्त हर्षित प्रीतिमती रानी ने अपनी सखी को कहा कि, 'हे सखि! उस चतर हंस ने चित्त में चमत्कार उत्पन्न करे ऐसा मुझ पर बहुत ही उपकार किया है। हंस के वचनानुसार करने से निर्धन पुरुष जैसे दैवयोग से अपने से कभी न छोड़ी जाय ऐसी निधि पावे, वैसे ही मैंने भी कभी न छोड़ा जा सके ऐसा जिन-धर्मरूपी एक रत्न और दूसरा यह पुत्र रत्न पाया। प्रीतिमती इतना कह ही रही थी कि इतने में रोगी मनुष्य की तरह वह बालक अकस्मात् आयी हुई मूर्छा से तत्काल बेहोश हो गया और उसके साथ ही प्रीतिमती भी असह्यदुःख से मूर्छित हो गयी। तुरन्त ही परिवार तथा समीप के लोगों ने 'दृष्टिदोष अथवा कोई देवता की पीड़ा होगी' ऐसी कल्पना कर बड़े खेद से ऊंचे स्वर से पुकार किया कि, 'हाय हाय!! माता व पुत्र इन दोनों को एकदम क्या हो गया?' क्षणमात्र में राजा, प्रधान आदि लोगों ने वहां आकर दोनों माता-पुत्र को शीतल उपचार किये जिससे थोड़ी देर में ही बालक व उसके बाद उसकी माता भी सचेतन हुई। पूर्वकर्मका योग बड़ा आश्चर्यकारी है। उसी समय सर्वत्र इस बात की बधाई हुई, राजपुत्र को उत्सव सहित घर ले आये, उस दिन राजपुत्र की तबियत ठीक रही, उसने बार-बार दूध पान आदि किया, परंतु दूसरे दिन शरीर की प्रकृति अच्छी होते हुए भी अरुचिवाले मनुष्य की तरह उसने दूध न पिया और चौविहार पच्चक्खाण करनेवाले की तरह
औषध आदि भी नहीं लिया। जिससे राजा, रानी, मंत्री तथा नगरवासी आदि बड़े दुःखित हुए; सभी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये। इतने में मानो उस बालक के पुण्य से ही आकर्षित हुए हों ऐसे मुनिराज मध्याह्न के समय आकाश में से उतरे। प्रथम परमप्रीति से बालक ने, पश्चात् राजा आदि लोगों ने मुनिराज को वन्दना की। राजा ने बालक के दूध आदि त्याग देने का कारण पूछा। तो मुनिराज ने स्पष्ट कहा कि, 'हे राजन्! इस बालक को रोग आदितथा अन्य कोई भी पीड़ा नहीं। इसको तुम जिन-प्रतिमा के दर्शन कराओ तभी यह दूध पानादि करेगा।' मुनिराज के वचनानुसार बालक को जिनमंदिर में ले जाकर दर्शन नमस्कार आदि कराया। पश्चात् वह पूर्वानुसार दूध पीने लगा। जिससे सब लोगों को आश्चर्य व संतोष हुआ। राजा ने पुनः मुनिराज से पूछा कि, 'यह क्या चमत्कार है?' मुनिराज ने कहा, 'हे राजन्! तुझे यह बात इसके पूर्वजन्म से लेकर कहता हूं, सुन!
जिसमें निंद्यपुरुष थोड़े और उत्तमपुरुष बहुत ऐसी पुरिका नाम नगरी में दीन मनुष्यों पर दया और शत्रु पर क्रूरदृष्टि रखनेवाला कृप नामक राजा था। उसका बृहस्पति के समान बुद्धिमान चित्रमति नामक मंत्री था; औरकुबेरके समान समृद्धिशाली वसुमित्र नामक श्रेष्ठी उस मंत्री का मित्र था। नाम से ही एक अक्षर कम, परन्तु ऋद्धि से बराबर ऐसा सुमित्र नामक एक धनाढ्य वणिक्पुत्र वसुमित्र का मित्र था। वणिक्पुत्र भी अनुक्रम से श्रेष्ठी की बराबरी का अथवा उसकी अपेक्षा अधिक उच्च भी होता है। उत्तमकुल में जन्म लेने से पुत्र के समान मान्य ऐसा एक धन्य नामक सुमित्र का सेवक