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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 123 रहित ऐसे चैत्य में सब जगह तीन स्तुति कहना।' यदि सब जगह तीन स्तुति करतेकरते ज्यादा समय लगे तो, अथवा वहां चैत्य बहुत हों तो समय और चैत्य इन दोनों का विचार करके प्रत्येक चैत्य में एक-एक स्तुति से चैत्यवंदन करना। चैत्य में जो मकड़ी के जाले आदि हो जायें तो उन्हें निकालने की विधि कहते हैं- सीलेह मंखफलए, इयरे चोइंति तंतुमाईसु । अभिजोइंति सवित्तिसु, अणिच्छ फेडंतऽदीसंता ॥ १ ॥ अर्थ ः साधु, मंदिर में मकड़ी के जाले आदि हो तो मंदिर की व्यवस्था करनेवाले अन्य गृहस्थी लोगों को प्रेरणा करे, वह इस प्रकार कि - 'तुम मंखफलक (चित्रकार का पटिया) के समान मंदिर को उज्ज्वल रखो। जैसे चित्रकार के चित्र का पटिया स्वच्छ हो तो सभी लोग उसकी प्रशंसा करते हैं, वैसे ही तुम जो मंदिरों को बारम्बार संमार्जन करके उज्ज्वल रखोगे तो बहुत लोग तुम्हारी पूजा, सत्कार करेंगे।' और मंदिर के सेवक लोगों को, जो कि मंदिर के, घर खेत आदि वृत्ति भोगते हैं, उनको ठपका देना। वह इस प्रकार - 'एक तो तुम मंदिर की वृत्ति भोगते हो, और दूसरे मंदिर की संमार्जन आदि व्यवस्था भी करते नहीं।' ऐसा कहने के उपरांत भी जो वे लोग मकड़ी के जाले आदि न निकाले, तो जिसमें जीव दिखायी न देते हों ऐसे तंतूजालों को साधु स्वयं निकाल डालें। ऐसे सिद्धान्त वचन के प्रमाण से साधु को भी नष्ट होते हुए चैत्य की सर्वथा उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, ऐसा सिद्ध हुआ । चैत्य में जाना, पूजा करना, स्नात्र करना इत्यादि की जो ऊपर विधि कही है वह सब ऋद्धिमान् श्रावक के लिए है। कारण कि उसीसे, यह सब बन सकना संभव है। ऋद्धिरहित श्रावक तो अपने घर ही सामायिक लेकर किसीका कर्ज अथवा किसीके साथ विवाद आदि न हो तो ईर्यासमिति आदि में उपयोग रखकर साधु की तरह तीन निसीहि आदि `भावपूजा का अनुसरणकर विधि से मंदिर जाये । पुष्प आदि सामग्री न होने से वह श्रावक द्रव्य पूजा करने को असमर्थ होता है, इसलिए फूल गुंथना आदि काम, काया से बन सके ऐसा हो तो सामायिक पार (छोड़) कर करे। शंका : सामायिक छोड़कर द्रव्यस्तव करना किस प्रकार उचित हो सकता है? समाधान: ऋद्धिरहित श्रावक को सामायिक करना अपने हाथ में होने से चाहे उसी क्त कर सकता है, परंतु मंदिर का कार्य तो समुदाय के अधीन होने से किसी-किसी समय ही करने का प्रसंग आता है, अतएव प्रसंग आने पर उसे करने से विशेष पुण्य का १. जिनमंदिर में चैत्यवंदन में तीन स्तुति करने का विधान दर्शाया है।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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