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श्राद्धविधि प्रकरणम्
103 आम्रलताप्रविभक्ति, वनलताप्रविभक्ति, कुंदलताप्रविभक्ति, अतिमुक्तलताप्रविभक्ति और श्यामलताप्रविभक्ति यह लताप्रविभक्ति नामक इक्कीसवां भेद [२१] द्रुतनृत्य (उतावला नाच) यह बाइसवां भेद [२२] विलंबितनृत्य (धीरे नाचना) यह तेइसवां भेद [२३] द्रुतविलंबित नृत्य यह चौइसवां भेद [२४] अंचितनृत्य नामक पच्चीसवां भेद [२५] रिभितनृत्यनामक छब्बीसवां भेद [२६] अंचितरिभिदनृत्यनामक सत्ताइसवां भेद [२७] आरभटनृत्यनामक अट्ठाइसवां भेद [२८] भसोलनृत्यनामक उन्तीसवां भेद [२९] आरभटभसोलनृत्यनामक तीसवां भेद [३०] उत्पात (ऊंचा चढ़ना) निपात (नीचे पड़ना) प्रसक्त (अटकना), संकुचित (अंग संकोचना) प्रसारित (अंग प्रसारना), रेचक, आरचित, भ्रांत (बहकना),संभ्रांत (अत्यंत बहकना), यह उत्पातादिनृत्यनामक इकतीसवां भेद [३१] तीर्थंकरादि महापुरुषों के चरित्र का अभिनय करना यह बत्तीसवां भेद [३२] इस प्रकार रायपसेणीसूत्र में बत्तीसबद्धनाटक के भेद कहे हैं। पांच अभिगम :
- इस प्रकार राजा आदि ऋद्धिशाली श्रावक जिनमंदिर जाये। परन्तु जो साधारण ऋद्धिवन्त हो, उसने तो लोकपरिहास टालने के निमित्त अहंकार का त्याग कर अपने कुल तथा द्रव्य के उचित आडंबर रख, भाई, मित्र, पुत्रादिक परिवार को साथ लेकर जिनमंदिर को जाना। वहां जाने में (१) फूल, तांबूल, सरशव, दूर्वा (दूब), तथा छरी, पादुका, मुकुट, वाहन प्रमुख सचित्त और अचित्त वस्तु का त्याग करे। यह प्रथम अभिगम है। (२) मुकुट को छोड़कर शेष अलंकार आदि अचित्त द्रव्य का त्याग न करे यह दूसरा अभिगम है। (३) एक (बिना जोड़का) तथा चौड़े वस्त्र से उत्तरासंग करे, यह तीसरा अभिगम है। (४) भगवान को देखने पर दोनों हाथ जोड़ 'णमो जिणाणं' यह कहता हुआ वंदन करे, यह चौथा अभिगम है। (५) मन को एकाग्र करे, यह पांचवां अभिगम है। ऐसे पांच अभिगम पूर्ण करे तथा निसीहि कहकर जिनमंदिर में प्रवेश करे। इस विषय में पूर्वाचार्यों के वचन इस प्रकार है-सचित्त द्रव्य का त्याग करना (१), अचित्त द्रव्य का त्याग नहीं करना (२), एकशाट (एकपने का बिना जोड़) उत्तरासंग करना (३), भगवान को देखते ही दोनों हाथ जोड़ने (४), और मन की एकाग्रता करना (५) इत्यादि, राजा आदि को तो जिनमंदिर में प्रवेश करे उसी समय राज चिन्ह त्याग देना चाहिए। कहा है कि खड्ग, छत्र, जूता, मुकुट और चंवर ये श्रेष्ठ राजचिन्ह त्यागकर... इत्यादि। .. प्रदक्षिणा :
__ मंदिर के प्रथम द्वार में प्रवेश करते, मन, वचन, काया से घर सम्बन्धी व्यापार का निषेध किया जाता है, ऐसा बताने हेतु तीन बार निसीही की जाती है, परन्तु यह निसीही एक ही गिनी जाती है, कारण के, एक घर सम्बन्धी व्यापार का ही उसमें निषेध किया है। पश्चात् मूलनायकजी को वन्दनाकर 'कल्याण के इच्छुक लोगों को सर्व उत्कृष्ट वस्तुएं प्रायः दाहिनी ओर ही रखना' ऐसी नीति है,अतएव मूलनायकजी
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