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श्राद्धविधि प्रकरणम् पहना, तब राजा ने कहा कि, 'मुझे नवीन वस्त्र दे' चाहड़ ने कहा-'ऐसा नवीन वस्त्र सवालक्षदेश की बेबेरापुरी में ही मिलता है, और वह वहां से वहां के राजा का पहना हुआ ही यहां आता है।' पश्चात् कुमारपाल ने बंबेरा के राजा के पास से एक बिना वापरा दुकुल वस्त्र मांगा, परंतु उसने नहीं दिया। तब कुमारपाल राजा ने रुष्ट हो चाहड़ को 'बहुत दान न करना' ऐसा कहकर साथ में सैन्य देकर भेजा। तीसरे दिन चाहड़ ने भंडारी के पास से लक्ष द्रव्य मांगा, तो उसने नहीं दिया, अतः उसे निकाल दिया, और यथेच्छ दान देकर रात्रि को चौदह सौ ऊंट सवार के साथ बंबापुर को घेर लिया। उस दिन नगर में सातसो कन्याओं का विवाह था। उसमें विघ्न न आये, इस हेतु से वह रात्रि बीत जाने तक विलम्ब करके प्रातःकाल होते ही चाहड़ ने दुर्ग (किल्ला) हस्तगत किया। तथा बंबेरा के राजा से सात करोड़ स्वर्णमुद्रा व ग्यारहसो घोड़े लिये तथा किल्ले को तोड़कर चूर्ण-चूर्ण कर दिया। उस देश में अपने स्वामी कुमारपाल की आज्ञा प्रचलित की तथा सातसौ सालवियों को साथ लेकर उत्सव सहित अपने नगर में आया। कुमारपाल ने कहा-'अतिउदारता यह तेरे में एक दोष है। वही दोष दृष्टिदोष से अपनी रक्षा करने का तेरा एक मंत्र है ऐसा मैं जानता हूं, कारण कि तू मेरी अपेक्षा से भी अधिक द्रव्य का व्यय करता है।' चाहड़ ने कहा, 'मुझे मेरे स्वामी का बल है इससे मैं अधिक व्यय करता हूं। आप किसके बल से अधिक व्यय करें?' चाहड़ के इस चतुरतापूर्ण उत्तर से कुमारपाल बहुत प्रसन्न हुआ और उसको सन्मानपूर्वक 'राजघरट्ट' की पदवी दी। दूसरे का पहना हुआ वस्त्र न लेना इस पर यह दृष्टांत है। पूजावसर में सप्त प्रकार की शुद्धि :
वैसे ही स्वयं उत्तम स्थान से, अथवा स्वयं जिसके गुण का ज्ञाता हो ऐसे अच्छे मनुष्य से पात्र, ढक्कन, लानेवाली व्यक्ति, मार्ग आदि सर्व की पवित्रता की यतना रखना आदि युक्ति से पानी, फूल इत्यादिक वस्तु लाना। फूल आदि देनेवाले को यथोचित मूल्य आदि देकर प्रसन्न करना। वैसे ही, श्रेष्ठ मुखकोश बांध, पवित्र भूमि देख युक्ति से जिसमें जीव की उत्पत्ति न हो ऐसी केशर, कर्पूर आदि वस्तु से मिश्रित चंदन घिसना। चुने हुए तथा ऊंचे अखंड चांवल, शोधित धूप व दीप, सरस स्वच्छ नैवेद्य तथा मनोहर फल इत्यादि सामग्री एकत्रित करना। यह द्रव्यशुद्धि है। राग द्वेष, कषाय, ईर्ष्या, इस लोक तथा परलोक की इच्छा, कौतुक तथा चित्त की चपलता इत्यादि दोष त्यागकर चित्त की एकाग्रता रखना, सो भावशुद्धि है। कहा है कि
मनोवाक्कायवस्रोर्वीपूजोपकरणस्थितेः।
शुद्धिः सप्तविधा कार्या, श्रीअर्हत्पूजनक्षणे ॥१॥ मन, वचन, काया, वस्त्र, भूमि, पूजा के उपकरण और स्थिति (आसन आदि) इन सातों की शुद्धि भगवान की पूजा करते समय रखनी चाहिए। - इस प्रकार द्रव्य तथा भाव से शुद्ध हुआ मनुष्य गृह चैत्य (घरमंदिर) में प्रवेश