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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
कृश मध्यभाग हैं, वे द्रविड़ देश की स्त्रियां राजात्रों के मन से कैसे निकल गई ?
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क्षपाः क्ष्मामीकृत्य प्रसभमपहृत्याम्बु सरितां प्रताप्योवीं कृत्स्नां तरुगहनमुच्छोष्य सकलम् । क्व सम्प्रत्युष्णांशुत इति समालोकनपरास् तडिद्दोपालोका दिशिदिशि चरन्तीह जलदाः ॥ ( वर्षा ऋतु का वर्णन है ) जिसने रातों को कृश (छोटी) कर दिया, बलात्कार से नदियों का पानी चुरा लिया ( सुखा दिया ), १० सारी पृथिवी को संतप्त कर दिया, जंगल के सारे वृक्षों को सुखा दिया । ऐसा अपराधी सूर्य अब कहां चला गया ? इसीलिए बिजली के दीपक हाथ में लिए मेव सब दिशाओं में उसे ढूंढते फिर रहे हैं । (२१)
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श्रथाससादास्तम निन्द्यतेजा जनस्य दूरोज्झितमृत्युभीतेः । उत्पत्तिमद् वस्तु विनाश्यवश्यं यथाहमित्येवमिवोपदेष्टुम् ॥
दीप्तिमान् सूर्य अस्त हो गया । मानो वह उन लोगों को, जिन्होंने मृत्यु का भय बिलकुल छोड़ दिया है, यह उपदेश देने के लिए कि 'जिस वस्तु की उत्पत्ति होती है उसका विनाश श्रवश्यभावी है। जैसे कि मेरा' |
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ऐन्द्रं धनुः पाण्डुपयोधरेण शरद् दधानार्द्रनखक्षताभम् । प्रसादयन्ती सकलङ्कमिन्दु तापं रवेरभ्यधिकं चकार ॥3
शरद ऋतु (नायिका) ने सूर्य (नायक) का सन्ताप ( तपन - जलन) बहुत बढ़ा दिया । क्यों न हो, वह उज्ज्वल पयोधरों (मेघों - स्तनों) पर ताजा नखक्षत के समान इन्द्र ( प्रतिनायक ) का धनुष दिखा रही है, और सकलङ्क चन्द्रमा ( प्रतिनायक) को प्रसन्न निर्मलआनन्दित ) कर रही है ।
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१. सूक्तिमुक्तावली, सुभाषितावली, सभ्यालंकरण संयोगशृङ्गार, पद्य - रचना में नाम से । सदुक्तिकर्णामृत में प्रोङ्कण्ठ के नाम से । कवीन्द्रवचन ३० समुच्चय और सुभाषित रत्नकोश में विना नाम के ।
२. सुभाषितावली में नाम से ।
३. सुभाषितावली में नाम से ।