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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ' असौ गिरेः शीतलकन्दरस्थः पारावतो. मन्मथचाटुदक्षः । .. धर्मालसाङ्गी मधुराणि कूजन संवोजते पक्षपुटेन कान्ताम् ॥' ...... पहाड़ की शीतल गुफा में बैठा हुआ, काम के चोंचलीं में निपुण ५ वह कबूतर मीठी बोली बोलकर गरमी से व्याकुल कबूतरी को अपने ... पंखों (परों) से पंखा कर रहा है। . .... ..... (१५). . . ' उद्ब (? व) हेम्यः सुदूरं घनजनिततमःपूरितेषु द्रुमेषु ...... प्रोद्ग्रीवं पश्य पादद्वयनमितभुवः श्रेणयः फेरवाणाम् । १० .. उल्कालोकः स्फुरद्भिनिजवदनदरीसपिभिर्वीक्षितेभ्यः . श्च्योतत् सान्द्रं वसाम्भः कुथितशववपुमण्डलेभ्यः पिबन्ति ॥' , देखिये, बादलों के छा जाने से दूर तक अंधेरा हो रहा है, पेड़ों से ' लाशें लटक रही हैं, उनमें से मज्जा बह रही है, शगाल के मुह से • '' आग निकला करती है, उसी के प्रकाश में लाशों को देखकर शगालों १५ की पांत की पांत गर्दन ऊंची किये और पृथिवी को पैरों से चांपकर घनी मज्जा को पी रही हैं। - कल्हारस्पर्शगभैः शिशिरपरिचयात् कान्तिमद्भिः कराग्रेश् चन्द्रेणालिङ्गिता यास्तिमिरनिवसने उसमाने रजन्याः । अन्योन्यालोकिनीभिः : परिचयजनितप्रेमनिःस्यन्दिनीभिर दूरारुढे प्रमोदे हसितमिव परिस्पष्टमाशासखीभि: ॥' . शिशर ऋतु आगई है, चन्द्रमा की किरणें शीतल और प्रकाश।... मान हो गई हैं। चन्द्रमा (नायक) ने अपनी किरणों (हाथों) को बढ़ाकर रात्रि (नायिका) का प्रालिङ्गन किया, उसका अन्धकाररूपी २५ वस्त्र खिसकने लगा। इस पर दिशाएं (उसकी सखियां) बहत पान न्दित होने से खिलखिला कर हंस पड़ी, चारों ओर प्रकाश फैल गया। १. सदुक्तिकर्णामृत में नाम से। २. वहीं, नाम से। ३. वहीं, नाम से।
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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