SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाम्बवती - विजय के उपलब्ध श्लोक वा श्लोकांश ८५ (११) तन्वङ्गीनां' स्तनौ दृष्ट्वा शिरः कम्पयते 'युवा 1 तयोरन्तरसंलग्नां दृष्टिमुत्पाटयन्निव ।।' कोमलाङ्गी नारियों के स्तनों को देखकर जवान आदमी सिर घुनता है। जैसे कि उनमें निगाह फंस गई है, उसे हिला-हिलाकर ५ उखड़ रहा है। (१२) उपोढरागेन विलोलतारकं तथा गृहीतं शशिना निशाशुखम् । यथा समस्तं तिमिरांशुकं तया पुरोऽतिरागाद् गलितं न वीक्षितम् ॥' चन्द्रमा (नायक) ने रात्रि (नायिका) का मुख (प्रदोषकाल - १० वदन) जिसमें तारे ( आंखों की पुतलियां ) चंचल हो रहे थे, राग (ललाई - प्रीति) बढ़ जाने से यों पकड़ा कि उसे अन्धकाररूपी वस्त्र ( दुपट्टा ) सारे का सारा खिसकता हुआ जान ही न पड़ा । (१३) पाणौ पद्मधिया मधूकमुकुल भ्रान्त्या तथा गन्डयोर् नीलेन्दीवरशङ्कया नयनयोर्बन्धूक बुद्ध्याऽधरे । लीयन्ते कबरीषु बान्धवजनव्यामोहबद्धस्पृहा । दुर्वारा मधुपा: कियन्ति सुतनु स्थानानि रक्षिष्यसि ॥ भला सुन्दरी ? तुम अपने कितने अङ्गों को इन भौरों से बचाप्रोगी? ये तो पीछा छोड़ते दिखाई नहीं देते। हाथों को कमल, कपोलों २० को महुवे की कलियां, आंखों को नीलकमल, अधर को बन्धूक, और केशपाश को अपने भाई-बन्धु समझकर वे बढ़े चले आते हैं । १. कवीन्द्रवचन समुच्चय में पाणिनि के नाम से, दशरूपक और वाग्भट्ट काव्यालंकार में बिना नाम के । १५ २५ २. सदुक्तिकर्णामृत में नाम से, जल्हण की सुवित मुक्तावली में नाम से, वल्लभदेव की सुभाषितावली में नाम से । सुभाषितरत्न कोष, सूवित मुक्तावली - सार संग्रह, ध्वन्यालोक, अलङ्कारस्र्वस्व ( रुय्यक), काव्यानुशासन ( हेमचन्द्र ) और अलङ्कारतिलक में विना नाम के । ३. सदुक्तिकर्णामृत में नाम से, कवीन्द्रवचन समुच्चयं और अलङ्कारशेखर में विना नाम के, शार्ङ्गधरपद्धति और पद्य रचना में 'अचल' के नाम से 1 ३०
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy