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छठा परिशिष्ट - जाम्बवती-विजय के उपलब्ध श्लोक वा श्लोकांश ..
'जाम्बवती.विजय' अपर नाम 'पातालविजय' के सम्बन्ध में इस इतिहास के प्रथम भाग (पृष्ठ २६३ च० सं०) में संक्षेप से, और द्वितीय भाग में 'लक्ष्य-प्रधान काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि' नामक ३० वें अध्याय (पृष्ठ ४६४-४७३, तृ० सं०) में विस्तार से लिख चुके हैं। महामुनि पाणिनि के इस महान काव्य के उद्धरण अभी तक जिन २६ ग्रन्थों में उपलब्ध हुए हैं, उनके नाम उसी प्रकरण
(पृष्ठ ४७१-४७२) में लिख चके हैं। अब यहाँ उन ग्रन्थों में इस १० महाकाव्य के जितने भी श्लोक वा श्लोकांश उपलब्ध हुए हैं. उन्हें - हम नीचे दे रहे हैं। पाठकों को इन उद्धरणों से इस काव्य के शब्द
लालित्य एवं भावसौन्दर्य का कुछ परिचय मिलेगा। .... . हम (भाग २, पृष्ठ ४३४ तृ० सं०) लिख चुके हैं कि सब से
प्रथम पाणिनीय इस महाकाव्य के उपलब्ध उद्धरणों का संकलन १५ पी० पीटर्सन ने किया था। उसके पश्चात् नये उद्धरणों के साथ पं०
चन्द्रधर गुलेरी ने हिन्दी-अनुवाद सहित इनका संग्रह प्रकाशित किया था । तत्पश्चात् दो उद्धरण और उपलब्ध हुए हैं। हम प्रथम पं० चन्द्रधर गुलेरी के संकलनानुसार उद्धरण दे रहे हैं, पश्चात् नये
उद्धरण दिये जायेंगे। पं० चन्द्रधर गुलेरी का भाषानुवाद भी स्वल्प २० शोधन के साथ दिया जा रहा है। .
... अस्ति प्रतीच्यां दिशि सागरस्य वेलोमिगूढे 'हिमशैलकुक्षौ।
पुरातनी विश्रुतपुण्यशब्दा महापुरी द्वारवती च नाम्ना ॥ .:..१. यहाँ 'हिमशैल' शब्द विचारणीय हैं। द्वारका के प्रासपास के पर्वतों २५ पर बर्फ नहीं जमती। सम्भव है हिम शब्द ठण्डे अर्थ में प्रयुक्त हुआ हो, अथवा शान्त ज्वालामुखी पर्वत की ओर इसका संकेत हो ।
२. दुर्घट वृत्ति ४।३।२३ । पृष्ठ ८२ (प्र० सं०)- 'तथा च जाम्बवती विजय पाणिनिनोक्तम् ............ इति द्वितीय सर्गे।'