________________
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
कपयोः कपकारौ च तद्वर्गीयाश्रयत्वतः । पलक्क्नी चख्ख्नतुर्जग्मिर्जग्घ्नुरित्यत्र यद् वपुः ॥ नासिक्येनोक्तं कादीनां त इमेऽयमाः ।
तेषामुकारः संस्थानवर्गीयलक्षकः ॥ ५ लघु पाठ में सर्वत्र आवश्यक नहीं कि उस पाठ में वृद्धपाठ की
अपेक्षा लघुत्व ही हो। समूहावलम्बन से लघुत्व और वृद्धत्व देखा जाता है । लघुपाठ के सप्तम प्रकरण के जो सूत्र उद्धृत किए हैं, उन के विषय में यह भी सम्भावना हो सकती है कि लघुपाठ के किसी
हस्तलेख में ये श्लोक किसी पाठक ने ग्रन्थान्तर से ग्रन्थ के प्रान्त १० (हाशिये) पर लिखे हों, और उत्तरकाल के प्रतिलिपिकर्ता ने उन्हें
छूटा हुआ पाठ मानकर मूल में सन्निविष्ट कर दिया हो। - अतः जब तक लघुपाठ का अन्य हस्तलेख उपलब्ध न हो जाए, कुछ समस्याएं बनी ही रहेंगी।