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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
में सप्रमाण दर्शाया है कि पञ्चपादी उणादि प्रापिशलि-प्रोक्त है,
और उसमें प्रयुक्त 'अम्' प्रत्याहार की दृष्टि से प्रत्याहारसूत्र में निर्दिष्ट अमङणन क्रम प्रापिशलि द्वारा उपज्ञात है, और यही क्रम उसके शिक्षासूत्र में भी है । पाणिनीय सूत्र में वर्गक्रम से पाठ है ।
अगले उद्धरणों में कार और कर का भेद है।' पाणिनीय कर पाठ पाणिनि के कृत्रो हेतुताच्छील्यानुलोम्येषु (३।२।२०) सूत्र के अनुसार है। कार पाठ में औत्सर्गिक अण् की कल्पना करनी पड़तो
इन भेदों के अतिरिक्त पाणिनीय शिक्षा में प्रापिशल शिक्षा की १० अपेक्षा निम्न सूत्र अधिक हैं
कण्ठ्यान् आस्यमात्रान् इत्येके ॥१७॥ दन्तमूलस्तु तवर्गः ।१।११॥ विवृतकरणा वा ।३।८॥
तीन सूत्रों का प्राधिक्य श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा १५ प्रकाशित, लघुपाठ से दर्शाया है । हम पूर्व कह चुके हैं कि उक्त हस्त. लेख में मध्य-मध्य में लेखकप्रमाद से कुछ सूत्र नष्ट हए हैं। इनके अतिरिक्त सप्तम प्रकरण में चार सूत्र ऐसे हैं, जो आपिशलीय शिक्षा में नहीं हैं (हमारे द्वारा प्रकाशित वृद्ध पाठ में भी नहीं हैं) । वृद्धपाठ में
तो उक्त तीन सूत्रों के अतिरिक्त ७-८ सूत्र और ऐसे हैं, जो आपि२० शल शिक्षा में नहीं हैं।
इस संक्षिप्त विवेचना से स्पष्ट है कि स्वामी दयानन्द द्वारा प्रकाशित शिक्षासूत्र पाणिनीय ही हैं ।
अब हम एक ऐसा प्रमाण भी उपस्थित करते हैं, जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि ये सूत्र प्राचीन ग्रन्थकारों द्वारा पाणिनि के नाम से स्मत २५ भी हैं। तैत्तिरीय प्रातिशाख्य की 'त्रिरत्न-भाष्य' नामक व्याख्या का रचयिता सोमयार्य लिखता है
'सन्ध्यक्षराणां ह्रस्वा न सन्ति इति पाणिनीयेऽपि । मैसूर संस्क०, पृष्ठ ४५० ।
इस प्रमाण की उपस्थिति में पाणिनीय शिक्षा-सूत्रों के सम्बन्ध ३० १. पाणिनि के शिक्षासूत्र के वृद्ध पाठ में 'कार' पाठ मिलता है।
२. यही कल्पना पाणिनीय शिक्षा के वृद्ध पाठ 'कार' में भी करनी होगी।
२. यहा १