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मूल पाणिनीय शिक्षा
विचार करना अत्यन्त आवश्यक हो गया कि स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रकाशित शिक्षासूत्र पाणिनीय हैं, अथवा आपिशल। दोनों के सूत्रपाठों की तुलना से इतना तो स्पष्ट है कि दोनों का पाठ प्रायः समान है । परन्तु जहां परस्पर में वैषम्य है, वह प्रवक्तृ-भेद के कारण है, अथवा पाठान्तरमूलक है । यद्यपि कुछ वैषम्य पाठान्तरमूलक कहे ५ जा सकते हैं, पुनरपि कुछ पाठ ऐसे अवश्य हैं, जो प्रवक्तृभेद के कारण ही हैं । यथाआपिशाल पाठ
पाणिनीय पाठ ईषद्विवृतकरणा ऊष्माणः। ईषद्विवृतकरणा ऊष्माणः ।
विवृतकरणा वा। विवृतकरणाः स्वराः। विवृतकरणाः स्वराः।
पाणिनीय पाठ में ऊष्म वर्णों का पक्षान्तर में विवृतकरण प्रयत्न कहा है, वह आपिशल पाठ में नहीं है । पाणिनीय अष्टाध्यायी में एक सूत्र है-नाज्झली (१।१।१०) । इस सूत्र द्वारा पूर्व तुल्यास्यप्रयत्न सवर्णम् (१।११६) सूत्र से प्राप्त अचों और हलों की (अ इ ऋल की १५ क्रमशः ह श ष स के साथ) सवर्ण संज्ञा का निषेध किया है। उक्त हलों और अचों की सवर्ण संज्ञा तभी हो सकती है, यदि स्वरों और ऊष्मों के प्राभ्यन्तर प्रयत्न समान हों। दोनों के प्राभ्यन्तर प्रयत्न की समानता विवतकरणा वा इस पाणिनीय सूत्र से ही सिद्ध है। प्रापिशल शिक्षा में उक्त सूत्र न होने से अज्झलों की सवर्ण संज्ञा ही प्राप्त २० नहीं होती। इसके अतिरिक्त दोनों शिक्षासूत्रों के निम्न पाठ भी द्रष्टव्य हैं
आपिशल पाठ . पाणिनीय (लघु) पाठ जमङणनाः स्वस्थाना
अणनमाः स्वस्थाननासिकास्थानाः(१।१६)। नासिकास्थानाः (१२१)। । स्पर्शयमवर्णकारो .... (५१)। स्पर्शवणकरो ।। अन्तस्थवर्णकारो..... (५२)। अन्तस्थवर्णकरो.........। ऊष्मस्वरवर्णकारो..... (५३)। ऊष्मस्वरवर्णकरो...।
इनमें से प्रथम उद्धरण में 'नमङणनाः' निर्देश उणादि जमन्ताड्डः (११११४) सूत्र में प्रयुक्त ञम् प्रत्याहार के अनुरूप अमङणनम् प्रत्या- ३० हारसूत्रानुसारी है । हमने अपने 'संस्कृत व्याकरण शास्त्र के इतिहास'