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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती को प्राप्त हुए शिक्षासूत्रों का दूसरा हस्तलेख चिरकाल तक विद्वानों को उपलब्ध नहीं हुआ। इस कारण श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रकाशित शिक्षासूत्रों के पाणिनीयत्व में विद्वानों को शङ्का बनी ही रही । दैवयोग से श्री डा० रघवीरजी को अडियार (मद्रास) के पुस्तकालय से आपिशल शिक्षासूत्रों के दो हस्तलेख उपलब्ध हो गए। उन्होंने उनके साथ स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रकाशित शिक्षासूत्रों की तुलना करके स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रकाशित शिक्षासूत्रों के पाणिनीयत्व की स्थापना
की । इस विषय में उन्होंने कुछ लेख भी लिखे । १० इसके पश्चात् सन् १९३८ में कलकत्ता विश्वविद्यालय से मनो
मोहन घोष एम० ए० सम्पादित 'पाणिनीय शिक्षा' नामक एक ग्रन्थ प्रकाशित हुआ। इसकी बृहद् भूमिका में मनोमोहन घोष ने सारा प्रयत्न इस बात की सिद्धि के लिए लगाया कि पाणिनीय शिक्षा का
श्लोकात्मक पाठ ही पाणिनि द्वारा प्रोक्त है, स्वामी दयानन्द १५ सरस्वती द्वारा प्रकाशित सूत्रपाठ पाणिनीय नहीं है । इस प्रसंग में
आपने डा० रघुवीर के लेख की आलोचना के साथ-साथ सूत्रात्मक पाठ की दयानन्द द्वारा कल्पित पाठ सिद्ध करने की भरपूर चेष्टा की।
मनोमोहन घोष के उक्त भूमिकास्थ लेख की विस्तृत अालोचना हमने मल पाणिनीय शिक्षा इस शीर्षक से पटना की 'साहित्य' नाम्नी २० पत्रिका के सन् १९५६ अङ्क १ में प्रकाशित को। उसमें मनोमोहन
घोष के सभी हेत्वाभासों का सप्रमाण निराकरण किया, पार श्लोकात्मिका शिक्षा को पाणिनीय मानने पर अष्टाध्यायी से जो विरोध
आते हैं, उनका उल्लेख करके सूत्रात्मक पाठ का पाणिनीयत्व सिद्ध
किया। जो पाठक इस विषय में विशेष रुचि रखते हैं, वे हमारा उक्त २५ लेख अवश्य पढ़ें। .
प्रापिशल' और पाणिनीय शिक्षा पाणिनीय शिक्षा के सूत्र प्रापिशल शिक्षा के सूत्रों के साथ बहत साम्य रखते हैं। अत: आपिशल शिक्षासूत्रों की उपलब्धि पर यह
१. प्रापिशल शिक्षा के लिए देखिए हमारे द्वारा सम्पादित शिक्षा सूत्राणि' २० संग्रह । इसमें चान्द्रशिक्षा का पाठ भी छापा है।