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मूल पाणिनीय शिक्षा
'अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामि पाणिनीयं मतं यथा ।'
इस वचन से स्पष्ट है कि इलोकात्मिका शिक्षा मूलतः पाणिनिप्रोक्त नहीं है । वह तो किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पाणिनीय मत के अनुसार बनाई गई है । श्लोकात्मिका पाणिनीय शिक्षा के प्रकाशनाम्नी टीका के रचयिता के मत में इसका प्रवक्ता पाणिनि का अनुज ५ आचार्य पिङ्गल है।' इस प्रकार ग्रन्थ के अन्तःसाक्ष्य और टीकाकार के साक्ष्य से सर्वथा स्पष्ट है कि श्लोकात्मिका पाणिनीय शिक्षा चाहे, उसका लघु याजुष पाठ हो, चाहे वृद्ध आर्च पाठ, दोनों ही मूलतः पाणिनि-प्रोक्त नहीं हैं । श्लोकात्मिका पाणिनीय शिक्षा का पाणिनि प्रोक्त मूल ग्रन्थ इनसे भिन्न है। हमारा मत है कि पाणिनीय श्लोका- १० त्मिका शिक्षा का आधार पाणिनीय सूत्रात्मिका शिक्षा है।
श्लोकात्मिका पाणिनीय शिक्षा के पठन-पाठन में अधिक प्रयुक्त होने के कारण सूत्रात्मक पाठ लुप्त हो गया, हस्तलेख भी अप्राप्य हो गए । श्लोकात्मिका शिक्षा मूलतः पाणिनि-प्रोक्त नहीं है, इस तथ्य की
ओर सबसे पूर्व इस युग में श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती का ध्यान २५ गया। उन्होंने मूलभूत पाणिनीय शिक्षा की प्राप्ति के लिए महान् प्रयत्न किया। अन्ततः वि० सं० १९३६ के मध्य में प्रयाग के एक ब्राह्मण के गृह से पाणिनीय शिक्षा-सूत्र का एक हस्तलेख प्राप्त किया। यद्यपि वह हस्तलेख भी अधरा था, अन्त के एक या दो पत्र नष्ट हो चुके थे, पुनरपि स्वामी दयानन्द की यह उपलब्धि शिक्षाशास्त्र के २० क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण थी। उन्होंने उपलब्ध शिक्षासूत्रों का आर्यभाषा व्याख्या सहित वि० सं० १९३६ के अन्त में वर्णोच्चारणशिक्षा के नाम से प्रकाशित किया।
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१. ज्तेष्ठभ्रातृविहितो व्याकरणेऽनुजस्तत्र भवान् पिङ्गलाचार्यः तन्मत मनुभाव्य शिक्षां वक्तुप्रतिजीनीते-अय शिक्षामिति ।
२. आपिशल शिक्षा का भी एक श्लोकात्मक पाठ है। उसका प्रारम्भ का वचन है-अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामि मतमापिशलेमुनेः। ___इस श्लोकात्मिका शिक्षा के १६ सूत्र उपलब्ध हुये थे। इन्हें भी डा० रघुवीर जी ने आपिशल शिक्षासूत्रों के पश्चात् छापा था।
३. इस विषय में जो अधिक जानना चाहें, वे हमारे ऋषि दयानन्द के ३० ग्रन्थों का इतिहास' ग्रन्थ में देखें। ,