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पांचवां परिशिष्ट
मूल पाणिनीय-शिक्षा
हम इस ग्रन्थ के प्रथम भाग के पृष्ठ २५५-२५६ पर लिख चुके हैं कि पाणिनि ने एक 'सूत्रात्मिका शिक्षा का प्रवचन किया था। यहां ५ उसी के विषय में संक्षेप से वर्णन करके उसका मूलपाठ प्रकाशित
करते हैं। __ पाणिनीय शिक्षा के सम्प्रति दो प्रकार के पाठ मिलते हैं-एक सूत्रात्मक, और दूसरा श्लोकात्मक । सूत्रात्मक और श्लोकात्मक पाठ के भी लघु और वृद्ध दो-दो प्रकार के पाठ हैं।
आधुनिक पाणिनीय वैयाकरणों में पाणिनीय शिक्षा का श्लोकात्मक पाठ ही प्रसिद्ध है, और वैदिक भी वेदाङ्ग अन्तर्गत श्लोकात्मक पाणिनीय शिक्षा का ही पाठ करते हैं। श्लोकात्मक पाणिनीय शिक्षा के लघुपाठ में ३५ श्लोक, और वृद्धपाठ में ६० श्लोक हैं । लघुपाठ
याजुष पाठ कहाता है, और वृद्धपाठ ऋक्पाठ ।। १५ सूत्रात्मक शिक्षा के भी लघु और वृद्ध दो पाठ हैं । श्री स्वामी
दयानन्द सरस्वती ने वि० सं० १९३६ के मध्य में प्रयाग से पाणिनीय शिक्षा-सूत्रों का जो हस्तलेख प्राप्त किया था, वह पाठ लघुपाठ है। स्वामी दयानन्द सरस्वती को प्राप्त शिक्षासूत्र का हस्तलेख अन्त में
टित था । अतः उसमें अष्टम प्रकरण का प्रथम सूत्र भी अपूर्ण ही २० है। मध्य में कहीं-कहीं पर लेखकप्रमाद से कुछ सूत्र छुटे हुए प्रतीत
होते हैं । पाणिनीय शिक्षासूत्रों का जो पूर्ण पाठ हम छाप रहे हैं, वह वृद्धपाठ है । यह बात दोनों पाठों की तुलना से स्पष्ट हो जाती है।
मल-पाठ--पाणिनीय शिक्षा के श्लोकात्मक और सूत्रात्मक जो दो प्रकार के पाठ मिलते है, उनमें पाणिनि-प्रोक्त मूलपाठ कौन सा है, २५ इसका अति संक्षिप्त विवेचन किया जाता है
श्लोकात्मिका पाणिनीय शिक्षा का प्रथम श्लोक है