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चौथा परिशिष्ट
अनन्तराम-पर्यालोचित भाष्यसम्मत सूत्रपाठ
इस ग्रन्थ के हस्तलेख की प्रतिलिपि भी श्री ओम्प्रकाशजी द्वारा ही हमें प्राप्त हुई थी। यह ग्रन्थ वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती-भवन में है। इसकी संख्या २०३९।८६ है । यह हस्तलेख ५ एकपत्रात्मक अर्थात् दो पृष्ठों का है । इसमें कहीं-कहीं पर चिह्न देकर लेखक ने टिप्पणियां दी हैं । इस ग्रन्थ का लेखनकाल अज्ञात है।
इस लघु संकेतात्मक संग्रह में नागोजिभट्ट पर्यालोचित पाठ से कुछ भिन्नता वा वैशिष्ट्य है। यह दोनों पाठों की तुलना से व्यक्त होता है।
अनन्तराम-पर्यालोचित-भाष्यसम्मतः सूत्रपाठः श्रीपाणिनिकात्यायनपतञ्जलिभ्यो नमः । ओम् ।
उनः ऊं' [१।१।१७] । समो गम्यूच्छिभ्याम् [१।३।२६] । प्रादय उपसर्गा-क्रियायोगे [ १।४।५८] ॥१॥
विभाषापपरि० [२।११११] ॥२॥
कृत्याः [३३१६५] । आसुयुवपिरपित्रपिचमश्च [३।१।१२६] ।' प्रत्यपिभ्यां ग्रहेः [३।१।११८] । अध्यायन्यायोद्यावसंहाराश्च [३॥३॥ १२२] ॥३॥
· टिड्ढाण-क्वरपः [४।१।१५] । ०कुसिदाना० [४।१।३७] । 'वृद्धस्य च पूजायाम्, यूनश्च कुत्सायाम्' इति द्वे वातिके [४।१।१६५ २० सूत्रानन्तरम् । लाक्षारोचनाट्ठक् [४।२।२] । कलेढक् इति वार्तिकम् [४।२।७ सूत्रानन्तरम्] । सास्मिन् पौर्णमासीति [४।२।२०] । ब्राह्मण-वाद्यन् [४।२।४१] । ग्रामजनबन्धुभ्यस्तल् [४।२।४२] । . १. कोष्ठान्तर्गतः पाठोऽस्मदीयः। २. अत्र सूत्रनिर्देशे पौर्वापर्यमभूत् ।