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________________ २८ संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास 'मनुष्' प्रकृत्यन्तर की कल्पना की गई है, उसका एक लाभ यह भी है कि उससे निष्पन्न तथा पाणिनि से श्रविहित अनेक शब्दों का साधुत्व उपपन्न हो जाता है । पाणिनि की वर्तमान व्याख्या के अनुसार 'मानुष' शब्द का प्रयोग मानव जाति रूप अर्थ से अन्यत्र नहीं हो ५ सकता । परन्तु हमारी व्याख्यानुसार जब पाणिनि स्वतन्त्र 'मनुष्' प्रकृति के अस्तित्व का ज्ञापन कर देते हैं, तब उस स्वतन्त्र 'मनुष्' प्रकृति से अन्य अर्थों में भी यथाविहित प्रत्यय होकर तस्य इदम् आदि अर्थों में भी मानुष का साधुत्व उत्पन्न हो जाता है । जातिरूप अपत्य अर्थ से अन्यार्थ में भी मानुष शब्द का प्रयोग प्राय: उपलब्ध १० होता है । यथा १५ २० मानुषं हते यज्ञे कुर्वन्ति । शत० १|४|४|१ || भोगांश्चातीव मानुषान् । महा० उद्योग १०।१६।। 1 यहां मनुष्य सम्बधी तस्येदम् ( ४ | ३ | १२० ) अर्थ में मानुष पद प्रयुक्त है । मनुष् प्रकृति का सद्भाव — हमने अष्टाध्यायी की वैज्ञानिक व्याख्या द्वारा जिस 'मनुष्' प्रकृति की कल्पना की हैं, वह शशश्रृङ्गायमाण नहीं है । मनुष् षकारान्त प्रकृति वेद में बहुधा व्यवहृत हैं । इतना ही नहीं, मनुष्य की प्रकृति 'मनुष्' है, ऐसा यास्क ने भी माना है । यास्क का लेख है - 'मनुष्यः कस्मात् .....मनोरपत्यं मनुषो वा ।' निरुक्त ३|२|| मनुष प्रकारान्त - षकारान्त मनुष् प्रकृति का सद्भाव ऊपर दर्शा चुके 1 वेद में मनुष अकारान्त शब्द भी बहुत्र उपलब्ध होता है । अकारान्त मनुष भी प्राद्युदात्त है । सुगागम द्वारा सान्त प्रकृति का निर्देश - संस्कृत भाषा में अनेक २५ ऐसे शब्द हैं, जो सम्प्रति प्रकारान्त इकारान्त उकारान्त ही माने जाते हैं, परन्तु वे प्राचीन भाषा में सकारान्त ( षकारान्त) भी प्रयुक्त होते थे ( मनु और मनुष् का उदाहरण पूर्व व्याख्यात हो चुका है ) । इस तथ्य का व्यापक ज्ञापन क्यच् प्रत्यय परे 'सर्वप्रातिपदिकेभ्यः सुग्वक्तव्यः' ( श्र० ७ १।५१) वार्तिक से होता है ! इसके सर्वसम्मत ३० उदाहरण हैं--वधिस्थति, मधुस्यति आदि । हमारे विचार में दधिस्यति मधुस्थति अपपाठ हैं । सुक् के पूर्वान्त
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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