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आत्म-परिचय
२१ .
प्रथम संस्करण (उत्तर प्रदेश सरकार से पुरस्कृत) सन् १९५८ । द्वितीय , (इसमें लगभग ७०-८० पृष्ठ बढ़े हैं) सन् १९६३ । तृतीय ,
सन् १९८५ ५. वैदिक-छन्दोमीमांसा-इसमें वैदिक वाङ्मय से सम्बन्ध रखनेवाले ५-६ उपलब्ध छन्दःशास्त्रों के अनुसार सभी छन्दों के भेद-प्रभेदों के लक्षण और उदाहरण दर्शाये हैं। साथ में छन्दोज्ञान की वेदार्थ में उपयोगिता, छन्दःपरिवर्तन के कारण, और छन्दःशास्त्र का संक्षिप्त इतिहास आदि अनेक विषयों का समावेश किया है। वैदिक-छन्द:सम्बन्धी इतनी विशद विवेचना किसी भी भाषा के ग्रन्थ में नहीं की गई है।
प्रथम संस्करण (उत्तरप्रदेश सरकार से पुरस्कृत) सन् १९६० । द्वितीय परिवर्धित संस्करण (२० पृष्ठ बढ़) सन् १९७६ ।
६. ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों का इतिहास - इस ग्रन्थ में स्वामी दयानन्द सरस्वती के प्रत्येक ग्रन्थ का विशद इतिहास दिया है। उनके ग्रन्थों की पाण्डुलिपियों और उस समय तक अमुद्रित ग्रन्थों का विस्तृत विवरण दिया है। अनेक परिशिष्टों में विविध प्रकार की प्राचीन उपयोगो ऐतिहासिक सामग्री का संकलन किया है। : . प्रथम संस्करण
. . सन् १९५० द्वितीय परिष्कृत तथा परिवर्धित सं० (१३२ पृष्ठ बढ़े)सन् १९८३
७. ऋग्वेद की ऋक्संख्या (हिन्दी तथा संस्कृत)-ऋग्वेद की ऋक्संख्या के विषय में प्राचीन और अर्वाचीन विद्वानों में अत्यन्त मतभेद है । इस निबन्ध में सभी लेखकों की दी गई ऋक्संख्या की विवेचना और उनको गणना-सम्बन्धी भूलों का निदर्शन कराते हुये वास्तविक ऋग्गणना दर्शाई है। कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। अप्रकाशित ग्रन्थ
८. छन्दःशास्त्र का इतिहास । ९. शिक्षा-शास्त्र का इतिहास । १०. निरुक्त शास्त्र का इतिहास । इन ग्रन्थों की सामग्री का संकलन तो बहुत वर्ष पूर्व कर चुका