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प्रात्म-परिचय
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१२. वेध प्रतिपादित प्रात्मा का शरीर में स्थान--'वेदवाणी' (वाराणसी)
सन् १९५३ (परिष्कृत संस्करण, 'सरस्वती', प्रयाग) सन् १९५५ १३. वेदार्थ को विविध प्रक्रियाओं का ऐतिहासिक अनुशीलन'वेदवाणी' (वाराणसी)
सन् १९५४ ___१४. जनेन्द्र व्याकरण और उसके खिल-पाठ-'काशी ज्ञानपीठ' द्वारा प्रकाशित जैनेन्द्र-महावृत्ति के प्रारम्भ में मुद्रित । सन् १९५६
१५. मूल पाणिनीय शिक्षा-इसमें पाणिनीय शिक्षा के विविध पाठों की विवेचना करके सूत्रात्मक शिक्षा के प्रामाण्य का प्रतिपादन किया है । 'साहित्य' पत्रिका (पटना)।
सन् १९५६ १६. काशकृत्स्न व्याकरण और उसके उपलब्ध सूत्र-चन्नवीर कवि कृत कोशकृत्स्न धातुपाठ की कन्नड टीका के आधार पर काशकृत्स्न व्याकरण का परिचय तथा उसमें उद्धृत १३५ सूत्रों की व्याख्या सहित । 'साहित्य' (पटना)।
सन् १९६०६१ संस्कृत ग्रन्थों का सम्पादन १. निरुक्त-समुच्चयः-वररुचिकृत यह नरुक्त सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ है। निरुक्त-टीकाकार स्कन्दस्वामी ने इसे बहुत स्थानों पर उद्धृत किया है । इसके एकमात्र अशुद्धि-बहुल व त्रुटित हस्तलेख से सम्पादन कार्य किया है । 'प्रोरियण्टल मेगजीन' (लाहौर) में प्रथमवार प्रकाशित हुआ।
सन् १९३८ द्वितीय संस्करण
सन् १९६५ तृतीय संस्करण
सन् १९८३ ": २, भागवृत्ति-संकलनम्-अष्टाध्यायी की अति प्राचीन विलुप्त भागवृत्ति नाम्नी वृत्ति के शतशः पाठ प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं । मुद्रित तथा लिखित लगभग २०० ग्रन्थों का पारायण करके इस वृत्ति के पाठों का संकलन करके टिप्पणियों के सहित प्रकाशित किया है। प्रथम संस्करण 'मोरियण्टल मेमजीन', (लाहौर) सन् १९४०
.. परिष्कृत , . (सारस्वती सुषमा, काशी) सन् १९५४ .... परिवर्धित , (पुस्तकरूप में) ... ... सन् १९६५