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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
पित।
१३. वेदसम्मेलनस्याध्यक्षीय भाषणम् -'राजस्थान संस्कृत परिषद्' के अजमेर नगर में १६-१८ मार्च १९७५ में हुए द्वितीय अधिवेशन में वेद-सम्मेलन के अध्यक्ष का भाषण । परिषद् द्वारा मुद्रा
। सन् १९७५ हिन्दी में निबद्ध लेख-. .
१. महाभाष्य से प्राचीन अष्टाध्यायी को सूत्रवृत्तियों का स्वरूप । 'प्रोरियण्टल मेगजीन' (लाहौर) में छपा। सन् १९३६
२. वेद के अनक्रमणीसंज्ञक ग्रन्थ और तत्प्रतिपादित ऋषि-देवताछन्दों पर विचार-'दयानन्द-सन्देश' (देहलो) में छपा । सन् १९३६
३. ऋग्वेद की ऋक्संख्या--प्रथमवार, 'वैदिकधर्म' (औंध--जि० सातारा) में छपा।
सन् १९४४ • परिष्कृत संस्करण 'सरस्वती' (प्रयाग)में छपा। सन् १९५०
४. महाभाष्य के टीकाकार प्राचार्य भर्तृहरि--'जर्नल ऑफ दि यूनाइटेड प्रोवेंसिस् हिस्टोरिकल सोसाइटी' (लखनऊ) सन् १९४८ ___५. सामस्वराङ्कनप्रकार--सामवेद को मन्त्रसंहिता और उसके पदपाठ में प्रयुक्त स्वराङ्कन प्रकार की सोदाहरण व्याख्या। 'वेदवाणी' (वाराणसी)
सन् १९४६ ६. संस्कृत-व्याकरण का संक्षिप्त परिचय- 'कल्याण' पत्रिका (गोरखपुर) के 'हिन्दू-संस्कृति अंक में छपा। सन् १९५०
७. प्राचार्य पाणिनि के समय विद्यमान संस्कृत वाङमय'सरस्वती' (प्रयाग)
सन् १९५० ८. ऋग्वेद की कतिपय दानस्तुतियों पर विचार--'वेदवाणी' (वाराणसी)....
सन् १९५२ ६. दुष्कृताय चरकाचार्यम्-मन्त्र पर विचार--'वेदवाणी' (वाराणसी)
सन् १९५२ १०. दशमे मासि सूतवे-मन्त्र पर विचार-यह 'कल्याण' पत्रिका (गोरखपुर) के बालक मंक'.. सन् १९५३
११. भारतीय संस्कृति में नारी-'सम्मेलन पत्रिका' (प्रयाग) ..... .
.. . सन् १९५३.