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आत्म-परिचय
सहित प्रकाशित काशकृत्स्न धातुपाठ का परिचय दिया है। यह 'संस्कृत रत्नाकर' (देहली) पत्रिका के वर्ष १७ अंक १२ में छपा है ।
६. अष्टाध्याय्या अर्धजरतीया व्याख्या--इसमें अर्वाचीन वैयाकरणों द्वारा की गई अष्टाध्यायी की व्याख्या की आलोचना की है। 'सारस्वती-सुषमा' (वाराणसी) भाद्र संवत् २०१७। सन् १९६० ____७. भारतीय भाषाविज्ञानम्-भाषाविज्ञान के सम्बन्ध में भारतीय मत की विवेचना । यह लेख बड़ौदा की 'संस्कृत-विद्वत्सभा' में अगस्त १९६० में पढ़ा गया। 'गुरुकुल पत्रिका' के मई, जून, जुलाई के अङ्गों में प्रकाशित ।।
सन् १९६१ ८. प्राविभाषायां प्रयुज्यमानानाम् अपाणिनीयप्रयोगाणां साधुत्वविवेचनम्-इस लेख में संस्कृतभाषा के प्राचीन आर्ष ग्रन्थों में प्रयुज्यअपाणिनीय पदों के साधुत्व की विवेचना की है । 'वेदवाणी' (वाराणसी) वर्ष १४ अंक १,२,४,५ में प्रकाशित। सन् १९६१-६२
६. वेदानां महत्त्वं तत्प्रचारोपायाश्च-यह लेख राजस्थान संस्कृत सम्मेलन (सन् १९६६) के भीलवाड़ा (राज.) के अधिवेशन के अवसर पर वेद-परिषद के सभापति-भाषण के रूप में पढ़ा था (सम्मेलन द्वारा मुद्रापित)। यह लेख गुरुकूल-पत्रिका के अंकों में और संस्कृत-रत्नाकर में भी प्रकाशित हुआ।
सन् १९६६ १०. संस्कृतभाषाया राष्ट्रभाषात्वम्-यह लेख 'राजस्थान संस्कृत सम्मेलन' के भीलवाड़ा. अधिवेशन. (सन् १९६६) के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका में छपा है । यह अगस्त सितम्बर अक्टूबर सन् १९६६ की 'गुरुकुल पत्रिका' में भी छपा है। सन् १९६६
११. प्रसाधुत्वेनाभिमतानां संस्कृतवाङमये प्रयुक्तानां शब्दानां साधुत्वासाधुत्वविवेचनम्-यह लेख 'अखिल भारतवर्षीय संस्कृतसाहित्य सम्मेलन' के अक्टूबर १९६६ के देहली अधिवेशन में पढ़ा गया था। यह अप्रेल मई १९६७ को 'गुरुकुल-पत्रिका' में छपा है।
१२. श्रीमद्भगवद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिनो वेदभाष्यस्य वैशिष्टयम-यह लेख 'आर्यप्रतिनिधि सभा राजस्थान की हीरक जयन्ती के अवसर पर 'वेद-सम्मेलन' अजमेर (नवम्बर १९६६) में पढ़ा था। यह 'गुरुकूल-पत्रिका' के जनवरी फरवरी के अंक में छपा है। १९६७