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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'विरजानन्द साङ्गवेदविद्यालय' अपर नाम 'पाणिनि महाविद्यालय (मोतीझील) वाराणसी में अध्यापन कार्य किया। (च) सन १९५५ से १९५६ के प्रारम्भ तक देहली में स्वतन्त्ररूप में शास्त्री और संस्कृत एम० ए० के छात्रों को पढ़ाता रहा। [सन् १९५६ के मई मास से सन् १९६१ तक 'महर्षि दयानन्द स्मारक महालय' टंकारा में शोध कार्य किया।] (छ) सन् १९६२ से १९६६ तक अजमेर में अष्टाध्यायी, महान भाष्य, निरुक्त, पूर्वमीमांसा तथा कात्यायन श्रौत्रसूत्र प्रादि का स्वतन्त्ररूप से अध्यापन करता रहा। (ज) सन् १९६७ में केन्द्र द्वारा भुवनेश्वर ( उड़ीसा ) में स्थापित 'सान्ध्य संस्कृत महाविद्यालय' में ३ मास तक प्राचार्य पद पर कार्य किया। वहां का जलवायु स्वास्थ्य के अनुकूल न होने से मुझे यह स्थान छोड़ना पड़ा। (झ) जुलाई १९६७ से रामलाल कपूर ट्रस्ट बहालगढ़ (सोनीपत-हरयाणा) के पाणिनि विद्यालय में यथासम्भव अध्यापन कार्य कर रहा हूँ। विशेष-ख-घ च-छ निर्दिष्ट कालों में घर पर अध्ययनार्थ आये हुये छात्रों को निःशुल्क पढ़ाता रहा। (२) शोध-कार्य शोध कार्य का प्रारम्भ-मैंने छात्रावस्था में सन् १९३० से ही शोधकार्य प्रारम्भ कर दिया था। तब से अब तक निरन्तर इस कार्य में संलग्न हूं। .. अध्ययन के पश्चात् सन् १९३६ से जो शोधकार्य किया, वह दो प्रकार का है। एक किसी संस्था के साथ सम्बद्ध होकर दूसरा स्वर तन्त्ररूप से। - (क) सन् १९३६ से १९४२; १९४६ से ३१ जुलाई १९४७ तथा १९५०-१९५५ के प्रारम्भ तक 'विरजानन्द साङ्गवेद विद्यालय' लाहौर में अध्यापनकार्य के साथ-साथ श्री रामलाल कपूर ट्रस्ट द्वारा क्रियमाण शोधकार्य में सहयोग देता रहा
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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