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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास भाष्य पर्यन्त पाणिनीय व्याकरण, निरुक्तशास्त्र एवं अन्य सिद्धान्त ग्रन्थों का अध्ययन पूर्ण कर लिया था। पूर्व काशीवास के समय पूज्य गुरुवर्य पूर्वमीमांसा शास्त्र का अध्ययन न कर सके थे। उसकी न्यूनता उन्हें बराबर खलती रही। अतः मीमांसा दर्शन के विशिष्ट अध्ययन के लिये हम सभी छात्रों को साथ में लेकर सन् १९३१ के अन्त में पुनः काशी गये। वहां मैंने स्व० श्री म० म० चिन्नस्वामीजी शास्त्री और श्री पं० पट्टाभिरामजी शास्त्री से समग्र पूर्वमीमांसा का, श्री पं० ढुण्डिराज जी शास्त्री से न्याय वैशेषिक के अनेक प्राचीन दुष्कर ग्रन्थों का, श्री पं० भगवतप्रसादजी मिश्र वेदाचार्य से कर्मकाण्ड, विशेषकर कात्यायन श्रौतसूत्र का अध्ययन किया। कतिपय अन्य विषयों का भी अन्य गुरुजनों से अध्ययन किया। तदनन्तर सन् १९३५ में काशी से लौटकर लाहौर में रावी पार बारहदरी के समीप रामलाल कपूर के उद्यान में आश्रम की स्थिति हुई। यहां रहते हुए स्व० श्री पं० भगवद्दत्त जी के सान्निध्य में भारतीय प्राचीन इतिहास तथा अनुसन्धान कार्य की शिक्षा प्राप्त की। ___ इस प्रकार सन् १९२१ से १९३५ तक श्री गुरुवर्य पं० ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु तथा अन्य मान्य गुरुजनों के चरणों में रहकर संस्कृत वाङ्मय के विविध विषयों का अध्ययन किया, परन्तु कोई राजकीय परीक्षा नहीं दी। अप्रेल १९३६ में विरजानन्दाश्रम (लाहौर) का मैं विधिवत् स्नातक बना। इससे कुछ मास पूर्व २६ दिसम्बर १९३५ को मेरे पिताजी का इन्दौर राज्य के नन्दवाई ग्राम (चित्तौड़गढ़ से ३० मील दूर) में अध्यापन कार्य करते हुए एक मतान्ध स्थानीय राजकीय मुसलमान डाक्टर द्वारा मारक इजेक्शन देने के कारण स्वर्गवास हो गया था। २ जून १९३६ को मेवाड़ अन्तर्गत शाहपुरा के श्री प० मूलचन्दजी तुगनायत (त्रिगुणातीत) की पुत्री एवं श्री पं० भगवानस्वरूपजी (अजमेर) द्वारा पालिता 'यशोदा देवी' के साथ मेरा विवाह हा। इस समय मेरे तीन पुत्र और दो पुत्रियां हैं। ये सभी अपने अपने व्यवसायों वा घरों में सुव्यवस्थित हैं। राजकीय परीक्षा के परित्याग के कारण जीवन-निर्वाह का निश्चित साधन न होने से स्वीय परिवार के निर्वाहार्थ यत्र तत्र विविध
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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