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________________ ..: आत्म-परिचय --- साधु आश्रम (पुल काली नदी, अलीगढ़) की एक विज्ञप्ति प्रकाशित हई। इसमें स्वामी दयानन्द निर्शित 'प्रार्ष पाठविधि के अनुसार अध्ययनाध्यापन का उल्लेख था। उसे पढ़कर पिताजी ने उक्त प्राश्रम के प्राचार्यजी से पत्र-व्यवहार किया। उन्होंने मुझे अपने आश्रम में प्रविष्ट कर लेने की अनुमति दे दी। - ३ अगस्त १९२१ को पिता जी मुझे लेकर श्री स्वामी सर्वदानन्द जी के आश्रम में पहुंचे। वहां की सब व्यवस्था देखकर और सन्तुष्ट होकर मुझे गुरुजनों को सौंप दिया। उस समय आश्रम में श्री पं० ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु, श्री पं० शंकरदेवजी एवं श्री पं० बुद्धदेवजी (धारवाले) अध्यापन कार्य करते थे। पांच मास के पश्चात् ही विद्यालय गण्डासिंहवाला अमृतसर में स्थानान्तरित हो गया। वहां इसका नाम विरजानन्द प्राश्रम रखा गया। कुछ समय पश्चात् श्री पं० बुद्धदेवजी आश्रम से पृथक् हो गये। कुछ कारणों से 'सर्वहितकारिणी' नाम्नी संचालकसमिति आश्रम को अधिक दिन न चला सकी। अतः दोनों गुरुजन १२-१३ ब्रह्मचारियों को लेकर काशी चले गये। प्राय की यथावत् स्थिति न होने से एक समय अन्नक्षेत्र में भोजन करते कराते हमें व्याकरण पढ़ाते रहे और स्वयं दर्शनशास्त्रों का अध्ययन करते रहे । सन् १९२८ के प्रारम्भ में अमृतसर के प्रसिद्ध कागज के व्यापारी लाला रामलाल कपूर का स्वर्गवास हुआ (गण्डासिंहवाला में विरजानन्द आश्रम के लिए जितनी कागज कापी आदि की आवश्यकता होती थी, उसकी पूर्ति ये ही करते थे)। तदनन्तर इनके वैदिक धर्मनिष्ठ पुत्रों ने श्री पं० ब्रह्मदत्त जी जिज्ञासु को काशी से बुलाकर उनकी सम्मति से अपने पिता की स्मृति में रामलाल कपूर ट्रस्ट की स्थापना की और ब्रह्मचारियों के सहित अमृतसर आनेमा अनुरोध किया । तदनुसार श्री पं० ब्रह्मदत्त जी (इस समय तक श्री पं० शंकरदेव जी भी आश्रम से पृथक् हो गये थे) सभी छात्रों के सहित प्रमतसर चले गये और.सन् १९३१ के अन्त तक अमृतसरः में रहे। इस अवधि में मैंने श्री पं० ब्रह्मदत्तजी जिज्ञासु से पातञ्जल महा १. इनको सन् १९६३ में राष्ट्रपति ने संस्कृतभाषा की विशेष सेवा के लिये सम्मानित किया था। . ......
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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