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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास १० उन शिष्ट प्रयोगों को, जिनका साधुत्व इन व्याख्याताओं की व्याख्या से उपपन्न नहीं होता था, उन्हें अपशब्द कह दिया। इसके साथ ही इन वैयाकरणों ने स्वीय शास्त्र के आधारभूत सिद्धान्त के विपरीत एवं ऐतिहासिक तथ्य से विहीन यथोत्तरमुनीनां ५ प्रामाण्यम् सदृश सिद्धान्तों की कल्पना करली । और पूर्व-पूर्व प्राचार्य बोधित शब्दों को अपशब्द मान लिया। ___ व्याकरणशास्त्र का मुख्य आधार-व्याकरणशास्त्र का विशेषपाणिनीय व्याकरण का मुख्य आधार है-शब्दनित्यता । भगवान् पतञ्जलि ने इस तथ्य को महाभाष्य में स्थान-स्थान पर उजागर किया है।' इस तथ्य को स्वीकार करने पर कोई भी शब्द कालभेद से अपशब्द नहीं माना जा सकता । और ना ही उसमें कालभेद से विकार स्वीकार करते हुये यथोत्तर मुनि-प्रामाण्य से साधु शब्द स्वीकार किया जा सकता है। कुछ व्याख्याताओं ने शब्दनित्यत्वरूप स्वशास्त्र-सिद्धान्त-हानि १५ दोष से बचने के लिये कालभेद से प्रयोग में धर्म अथवा अधर्म की कल्पना की है। इसके लिए उन्होंने 'कृते तु मानवो धर्मः...."कलौ पाराशरी स्मत' रूप काल्पनिक वचनों का आश्रय लिया है। इस पक्ष में भी विचारणीय यह है कि उक्त वचन किसी भी शिष्ट ऋषिमुनि-प्रोक्त धर्मशास्त्र का नहीं है । अतः इसे हेतु बनाकर व्याकरणशास्त्र जैसे शिष्ट-प्रोक्त ग्रन्थ पर घटाना चिन्त्य है । इतना ही नहीं, धर्मशास्त्रों में जिन धर्मो=कर्त्तव्यकर्मों का विवेचन किया गया है, वे दो प्रकार के हैं । इन में कुछ धर्म शाश्वत हैं, जो देश-काल की सीमा से बाहर हैं। ये सदा ही एकरस रहते हैं । जैसे सत्यभाषण, चोरी का परित्याग, दीनों की सहायता करना आदि। ये ही शाश्वत धर्म २५ १. महाभाष्य प्र. १, पा. १, प्रा. १; अ. १, पा १, सूत्र १६ तथा अन्यत्र बहुत्र। २. यत्तु कश्चिदाह चाक्रवर्मण व्याकरणे द्वयशब्दस्यापि सर्वनामताभ्युपगमात् तद्रीत्याऽयं प्रयोग इति । तदपि न । मुनित्रयमतेनेदानीं साध्वसाधुविभाग स्तस्यैवेदानीन्तनै: शिष्टर्वेदाङ्गतया परिगृहीतत्वात । दृश्यते हि नियतकाला: ३० स्मतयः । यथा-कलौ पाराशरी स्मृतेति । शब्दकौस्तुभ ११११२७॥ इसका प्रत्याख्यान द्र०-सं० व्या० शास्त्र का इतिहास, भाग १, पृष्ठ ३७, टि० १ ।
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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