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________________ १८४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'मोदल्' शब्दस्य च पूर्वस्य प्रादिस्वरादुत्तरावयवस्य 'त' इति द्वितकारादेशो भवति । प्रयोग:-तुत्त-जुदि, मोत्त-मोदला। ('क्रम से अर्थ है अंत्यंत अंत, पहले-पहल), 'तुदि मोदल' इति कि? 'पोळगोळग'। पूर्वस्येति उत्तरस्य मा भूत् । प्रादिस्वरादिति अंत्यस्वरान्माभूत् ।" ५ इसी व्याकरण पर लेखक ने 'मंजरोमकरंद' नामक विस्तृत टीका भी लिखी है । उसे महाभाष्य के समान मानते हैं। मंजरी-मकरंद छपा है। मेरे पास एक कापि है । भाषा संस्कृत पर लिपि कन्नड़ है। २६८+२+१६ कुल पृष्ठ हैं। प्राकार 70x10” है। पूरा टेक्स्ट तो है। पर कहां छापा कब छया यह ग्रन्थ, इसका पता नहीं। पन्ने टूटने की हालत में हैं। हाल ही में नया रक्षाकवच लगा है।। सो, वि० सं० ७०० वाला भट्ट अकलंक सचमुच ही अन्य व्यक्ति होगा। पत्र लिखने की कृपा करें। . आपका विनीत.. मा० देवे गौ० १५ । [इस पत्र के अनुसार प्रस्तुत चतुर्य संस्करण (सं० २०४१) में संशोधन कर दिया है । अर्थात् - 'भट्ट प्रकलङ्क' का वर्णन पूर्वमुद्रित स्थान से हटा दिया है । पत्र-लेखक के प्रति आभार व्यक्त करने के लिये प्रधमभाग के अन्त में पृष्ठ ७२२ पर उल्लेख कर दिया है। (४८) ३० श्री दत्तात्रेय काशीनाश तारे का पत्र - ॥श्रीः ।' नागपूर दि० १७-६-१९७८. आदरणीय श्री० युधिष्ठिर मीमांसक, बहालगढ़ __ महोदय विद्वद्वर, २५ सादर वन्दे । - मैंने गतमास दिल्ली से आपके संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इति १. इस पत्र का निर्देश सं० व्या० शा० इ०' के प्रस्तुत संस्करण (सं. २०४१) के प्रथम भाग के पृष्ठ ५४२ पर किया है। - -
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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