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________________ ग्यारहवां परिशिष्ट (४७) श्रीम० देवे गौड एम० ए० का पत्र M. Deve Gowda; Mi A., __Hindi Dept., Govt. College, Hassan Pin 573201, Karnatak.. .. .. 29.8.76 . ५ . पूज्य युधिष्ठिर जी मीमांसक, श्रद्धा युक्त प्रणाम। ......... । प्रोपको संस्कृत साहित्य का इतिहास--प्रथम भाग पढ़ रहा हूं। १० ग्रंथ बहुत ही प्रौढ़ है। आपका कार्य स्तुत्य है ।। मेरे आनंद की तो सीमा नहीं। । आपने उसमें [पृ० ५६६ III संस्करण] में 'भट्ट अकलंक' (सं० ७००-८००) के किसी व्याकरण के प्रवचन के बारे में लिखा है। फिर "शब्दानुशासन की मंजरीमकरंद टीका के प्रारंभिक भाम का १५ एक हस्तलेख इंडिया प्राफीस, लंदन के पुस्तकालय में सुरक्षित है।" इसके बाद "इति......"प्रथमः पादः ।" आदि है। इसके बाद काल का निर्णय करते, बौद्धों के साथ वाद करनेवाले भट्ट अकलंक (वि० सं० ७००) के बारे में लिखा है। मुझे आपसे यही निवेदन करना है . क 'मंजरीमकरंद 'टीका लिखनेवाला 'भट्टाकलंकदेव' वि० सं० १७ २० वीं सदी का है। इनके गुरु का नाम अकलंकदेव है। . भट्टाकलंकदेव ने 'कर्णाटकशब्दानुशासनम्' नामक कन्नड़ भाषा का व्याकरण संस्कृत सूत्रों में लिखा है । इसमें चार पाद तथा ५६२ सूत्र हैं। एक सूत्र देखिए-"तुदि मौदलः पूर्वस्यादि स्वरात त्तश्च" (३८६) । इसमें 'तुदि', 'मोदल' कन्नड़ शब्द हैं 'त्त'. द्वित्वादेश है । २५ इस व्याकरण पर लेखक ने ही 'भाषामंजरी वत्ति' लिखी है। ऊपर के सूत्र पर वृत्तियों है- "प्राधिक्ये द्विः प्रयुज्यमानस्य 'तुदि' शब्दस्य १. यहां 'संस्कृत व्याकरण' शब्द होना चाहिये।
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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