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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
श्री कमलेशकुमार द्विवेदी का पत्र
वाराणसी ११६७७६
५ पूज्य गुरुजी
सादर प्रणाम - ___आपका कृपा पत्र दिनाङ्क १३७७६ को प्राप्त हुा । इसके लिये
हमेशा कृतज्ञ रहूंगा। यह वृत्तिप्रदीप अभी तक दो ही जगहों में मुझे ' देखने को मिला है । एक प्रतिलिपि सरस्वती भवन, संस्कृत विश्वविद्या१० लय वाराणसी में है। तथा दूसरी प्रति गवर्नमेण्ट ओरियण्टल मैन्युस्क्रिप्ट
लायब्ररी मद्रास-५ में उपलब्ध है। संस्कृत विश्वविद्यालय की प्रतिः गवर्नमेण्ट कालेज त्रिपुनीथरा अर्णाकुलम से मंगवाई गई है, ऐसा यहां के रजिस्टर में उल्लिखित है लेकिन मुझे त्रिपुनीथुरा से कोई सही उत्तर नहीं प्राप्त हुआ कि यह ग्रन्थ मूल हस्तलेख रूप में वहां प्राप्तः है। होशियारपुर में मलियालम लिपि में द्वितीयाध्याय पर्यन्त यह ग्रन्थ ताडपत्र में सुरक्षित है। महल लायब्ररी तज्जौर के ग्रन्थालय के पत्र से ज्ञात हुया कि यह ग्रन्थ वहां नहीं है। यदि भविष्य में कुछ
और पता चलेगा तो मैं आप को सूचना दूंगा। यदि आप को इस विषय पर कुछ और जानकारी प्राप्त हो तो सूचित करने का कष्ट २० करें।
. .......... भवदीय...
कमलेशकुमार द्विवेदी, अनुसन्धाता शिवकुमार शास्त्री छात्रावास क० नं० ६५
संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी-५
१. इस पत्र का कुछ भाग सं० व्या. शा. इ०' के प्रस्तुत संस्करण (सं० २५ २०४१) के भाग १, पृष्ठ ५८० पर छापा जा चुका है।