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ग्यारहवां परिशिष्ट
( ४५ )
श्री पं० कपिलदेव शास्त्री का पत्र
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कुरुक्षेत्र ८.७.७५
पूज्य पं० जी,
सविनय प्रणाम ।
कल कृपापत्र मिला । उत्तर में निवेदन है कि गणपाठ विवृति नामके ग्रन्थ यहां शारदा लिपि में है । डा० रामसुरेश त्रिपाठी (अध्यक्ष संस्कृत विभाग, मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़) ने देवनागरी तथा शारदा दोनों लिपियों में इस ग्रन्थ के हस्तलेख प्राप्त कर लिये हैं । वे १० इसका आलोचनात्मक संस्करण निकाल रहे हैं- ऐसी सूचना उन्होंने मुझे दी थी। यहां पं० स्थाणुदत्त जी के सुपुत्र श्री पिनाकपाणि शर्मा नें Ph . D के लिये इस गणपाठ विवृति तथा गुणरत्नमहोदधि के तुलनात्मक अध्ययन का प्रारम्भ मेरे निर्देशन में किया है। यद्यपि यह कार्य डा० त्रिपाठी ने उन्हें पं० स्थाणुदत्त जी के प्राग्रह पर दिया था। मेरी विशेष सहमति नहीं थी । गणपाठविवृति प्रकाशवर्ण का छोटा सा ग्रन्थ है । इसमें प्रायः पाणिनीय गणपाठ का छन्दोबद्ध संग्रह मात्र है । 'विवृति' की अन्वर्थकता के लिये एक दो शब्द ही व्याख्या के रूप में कहीं कहीं मिलते हैं। शेष कृपा ।
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आपका विनीत-कपिलदेव
[ इस पत्र का निर्देश मैंने 'सं० व्या० शा० इ०' के द्वितीय भाग के प्रस्तुत सं० २०४१ के संस्करण में पृष्ठ १६६ पर कर दिया है]
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