SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३/२३ एक ग्यारहवां परिशिष्ट .. उपलब्ध व्याकरणों के गणपाठ के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा पाणिनि के शुद्ध गणेपाठ देने का प्रयत्न किया है। भूमिका लगभग २५ पच्चीस पृष्ठं की जर्मन में हैं, किन्तु गणपाठ रोमन में है। आप आसानी से समझ लेंगे। इस पुस्तक को और आप के द्वारा प्रकाशित गंणपाठ को कुछ मास पूर्व मैंने मुशीराम मनोहरलाल के यहां सें. साथ ही खरीदी ५ थी। मैंने डा कपिलदेव को लिख दिया है-... Der Ganatratha Zu Den Adhyaya iv and v Der Gram-. TE matics Paninis.. .... दूसरी- पुस्तक The Character of the Indo-European mood... है। इसमें ग्रीक और संस्कत क्रियारूपों पर विचार है। .. . १० भवदीय रामसुरेश त्रिपाठी श्री पं० कुन्दनलाल जैन का पत्र १५ कुन्दनलाल जैन ____७३४ दरयागंज दिल्ली एम. ए. (संस्कृत, हिन्दी)एल. टी. ४ नवम्बर ६३ - साहित्य शास्त्री माननीय मीमांसकजी ! - सविनय अभिवन्दे । मैं दिल्ली के हस्तलिखित ग्रन्थागारों का सर्वेक्षण कर रहा हूं। लगभग १० हजार पांडुलिपियों में से ऐतिहासिक महत्व की सामग्री संकलित कर चुका हूं । अभी हाल में पुंजराज कृत 'सारस्वत व्या० की टीका' सं० १६४५ की लिखो हुई मिली है, जिसमें २३ श्लोकों की पुजरोज की प्रशस्ति है जिसमें 'पुंजराजो नरेन्द्रः' प्रयुक्त है। २५ इससे प्रतीत होता है कि पुंजराज केवल वैयाकरण ही नि-थे अपित .. १. इस पत्र का उपयोग यथास्थान नहीं हो सका। इसका खेद है। अगले संस्करण में उपयोग किया जायेगा।
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy