SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्यारहवां परिशिष्ट १७५ ६६ ईसवी के बराबर है । कालिदास भी इसी का सभारत्न है । अमरसिंह भी तो....... इस प्रकार संवत् विषयक कुछ और बातें भी हैं । यह विषय बड़ा लम्बा है । एक पत्र में बात समाप्त न होगी । इस प्रसंग में मेरी दो पुस्तकें छपने वाली हैं - १ भारतीय संवत्, २ पुराणभारतम् । दर्शन ५ होने पर मैं इसका विस्तृत परिचय दूंगा । किमधिकम् । बस जाने में जरा विलंब है। समय निकाल कर पत्र लिखा है । यात्रा में प्रायः शीघ्रतावश पत्र ऐसे ही लिखे जाते हैं । त्रुटियां आप क्षमा करेंगे । पत्रोत्तर दिल्ली में (४०) विनीत चन्द्रकान्त बाली सिरसा Delhi-6 11-7-63 १० १५ मान्यवर ! गुणिगणाग्रगण्य ! सादर चरणवन्दना । मैं सिरसा से बाज आया हूं। आप का ३ जुलाई का पत्र पाकर धन्य हो गया हूं। आपने मेरी नम्र प्रार्थना को स्वीकार कर लिया है - मेरे लिए इससे बढ़कर गौरव की २० बात और क्या होगी । इतिहास में प्रागत कतिपय व्यक्तियों की कालगणना पर आप पुन: विचार करेंगे और मुझे थोड़ी सेवा का सुग्रवसर प्रदान करेंगे - पढ़कर प्रसन्नता हुई । मैं तन मन से प्रापकी सेवा करूंगा । 1 २५ आपके शोध ग्रन्थ से मेरी एक स्थापना की पुष्टि हो गई है । मैं निश्चय किए हुए था कि उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर विक्रमादित्य और शूद्रक को भाई-भाई कहा जा सकता है । विक्रमादित्य का समय 66 A. D है। इसका संवत् विक्रमशाकाब्द कहलाता है । 'शकनृपकालातीत संवत्सर' के समस्त उल्लेख 66 A. D के हैं । शूद्रक का संवत् 78 A. D है, जो इस समय राष्ट्र द्वारा अपना लिया गया है। दोनों भाइयों में १२ वर्ष का सूक्ष्म व्यवधान है । श्रापने भर्तृहरि ३०
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy