________________
१७४
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
अनुसार) आप स्वनिर्धारित पाठ विषय दे रहे हैं । मेरी प्रार्थना मान नौवां अध्याय और सन्निविष्ट करलें । उसका शीर्षक होगा "वैयाकरण पारिभाषिक शब्दकोश" । आपकी रचना में बहुतेरे शब्द ऐसे आए हैं, जिनका व्याकरण क्षेत्र में अर्थ और हैं, और उससे अन्यत्र
५ अर्थ कुछ और है । इस शब्दकोश से पुस्तक का गौरव बढ़ जाएगा ।
A
२ - कालनिर्णय पर आप पुनः विचार करें। श्री भगवद्दत्त जी इस प्रसंग में पूर्णतया भ्रान्तिग्रस्त हैं । नये अनुसन्धान में आपके समक्ष कुछ कठिनाइयां अवश्य आएंगी। इस विषय में मैं आपकी पुनीत सेवा में उपस्थित रहूंगा । यथा
१०
(क) अपने शिवस्वामी का समय ( १ भाग : पृष्ठ ५५ २ ) ' संवत् ९१४ - ९४० माना है । इसका आधार आपने बताया है - राजतरंगिणी का एक श्लोक | आपको विदित हो राजतरंगिणी का इतिहास शक संवत् १०७० से १६७१ तक है ।' 'शक संवत्' ६१६ ईसा पूर्व - से गण्य होगा । तदनुसार प्रामाणिक इतिहास ४५४ ईसवी से १०५५ - ईसवी तक समाप्त है । अब आप बताइए इसमें अवन्तिवर्मा का काल क्या होगा ?
१५
(ख) वामन - समय कूतते हुए आपने पुनः भूल की ( १ भाग : पृष्ठ ५४२) ' । वलभी भंग का निश्चित समय ईसवी सन् ७८७ है। ( वही पृ० ५४४ पंक्ति ८-९ ) श्री जिन विजय जो ने जो अर्थ किया २० है : संव० ५७३, वह ठीक है । कल्हण प्रतिपादित मातृगुप्त का प्रेरक • विक्रमादित्य हर्ष का समय यही है । यथा
(१) हर्ष विक्रम संवत् ५७३ (२) विक्रमसंवत
३७५
}
ईसवी सन् ७८७
• मातृगुप्त का समय कल्हण के अनुसार ईसवी सन् २९४ है । दोनों में १६८ वर्ष का व्यवधान है ।
२५
(ग) वररुचि का समय भी आपने अशुद्ध लिखा है । ( २ भाग : पृष्ठ २२९) आप इमे संवत् प्रवर्तक विक्रम का समकालिक ( ५८ ई० पू० मानते हैं, जबकि उसका समय संवत् प्रवर्तक विक्रमादित्य
सं०२, वि० सं० २०२० । २. यह काल मुझे मान्य नहीं है । यु०मी०