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________________ १६० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास (२९) २० १२८ पंजाबी बाग पोस्ट शकूरबस्ती R.S. दिल्ली – ६ ७-८-६२ प्रिय पण्डित जी नमस्ते । आपका कार्ड तीन दिन हुए मिला । १. शान्तिपर्व १२२।४७ में सात वेदपारगों का कथन है । २. अगस्त्य के १२ शिष्य थे । उन में एक पर्णपारणार था । उस १० ने तमिल व्याकरण लिखा । उसके ग्रन्थ का आधार ऐन्द्र व्याकरण था । तोलकाप्पियं पर इसी पणंपारणार का भूमिकात्मक वचन है ।' 'यह तोलकाप्पियं ईसा से बहुत पूर्व का ग्रन्थ है । इसमें पाणिनीय शिक्षा के श्लोकों का अनुवाद है ।' १. देखो P. S. सुब्रह्मण्य शास्त्री, M. A. Ph. D. का लेख I. १५O.R. Madras, 1931 p. 183 उद्घाटन अभी नहीं हुआ । ७ अकतूबर को विचार है। पुस्तक शीघ्र छाप लें। यदि हो सकें तो मेरी पुस्तकों के पैसे भेजें । बहुत आवश्यकता है । अपना पूरा पता सदा लिखें । सब का नमस्ते । निरुक्त भाष्य लिख रहा हूं । (३०) ' कोष कल्पतरु में पृष्ठ ६५ पर षष्ठिभावी भर्तृहरिवृत्तिः सूत्रार्थबोधिका भगवद्दत्त D. C. sircar, studies in the Geography of ancient & २५ medieval India. १. यह अंश श्री पं० भगवद्दत्तजी के हाथ का कागज के एक टुकडे पर लिखा हुआ मेरे पास सुरक्षित रहा। उसे ही ऊपर दिया है ।
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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