________________
ग्यारहवां परिशिष्ट
१५६
(२८)
नई देहली
१६-१२-५० प्रियवर पं० यु० जी नमस्ते
कातन्त्र परिशिष्ट श्रीपत्तिदत्तकृत में भागवृत्ति के लगभग १५० पाठ हैं। ढूंढिये । और लिखिए । इस विषय का लेख 'पाल इण्डिया ओरियण्टल कान्फ्रेंस, बनारस, १९४३-४४, मुद्रित ग्रन्थ १६४६, पृष्ठ २७३ से है।
क्रमदीश्वर का सूत्र है-कृति षष्ठी वेति भागवृत्तिः। १० सुपद्ममकरन्द विष्णुमिश्र कृत में लगभग २० पाठ हैं ।
भागवृत्ति नाम का कारण-दो भागों में थी। छन्दोभाग, भाषाभाग। ___ गोयीचन्द्र-अत एव भाषाभागे भागवृत्तिकृत् ..." शे इति सूत्रं छन्दो भागः।
इसका दूसरा नाम अष्टकवृत्तिकृत् । भागवृत्ति को काशिका एकवृत्ति की तुलना में भागवृत्ति कहा है।
S. P. भट्टाचार्य इस लेख में कातन्त्र के दोनों दुर्ग एक मानता है । । यह लेखक सन्देह करता है कि भागवृत्तिकार इन्दु था।
मेरे गत कार्ड का भी उत्तर दें। अब शेष १६ फार्म रहा प्रतीत २० होता है । अन्तिम प्रूफ आर्डर करके मुझे लिखें। भागवृत्ति सम्पूर्ण करके सुन्दर मोटे कागज पर छाप दें। कातन्त्र परिशिष्ट जहां हो मैं मंगवा दूं। सब बातें पूर्ण और स्पष्ट लिखें । व्या० इ० के परिशिष्ट में आवश्यक बातें लगा दें अभी मैं यहीं रहूंगा।
भ० दत्त २५ - १. 'भागवृत्तिसंकलनम्' में सूत्र २।३।१२ पर उद्धृत । द्र० पृष्ठ १५ । सं० २०२१ ।
२. भागवृत्तिसंकलनम्' का अन्तिमरूप से संकलन सं० २०२१ में मैंने मजमेर में छपवाया था।