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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
येन देवस्त्रियम्बकः ॥ शान्तिपर्व ६६।३३।। कुभघोण संस्करण । १०.२-४६-प्रातः ६ बजकर २० मिनट । टिप्पणी में यह प्रमाण लिख लें।
शान्तिपर्व अध्याय २२४।६७ से शब्द अर्थ का विषय । क्या ५ श्वेतकेतु ने भी इस विद्या पर लिखा था। अन्वेषगीय है । यह श्वेत
केतु प्रौद्दालाकि, न्यायविशारद था-[शान्तिपर्व] २२४।२५॥ . . आप की कापी कितनी शुद्ध हो चुकी हैं। कागज का' मुझे अभी कोई पता नहीं पाया । आप श्री पं० जियालाल जी के पास गये बहुत अच्छा किया। उनका पत्र मिलने पर लिखूगा ।
भ० दत्त
.... (२७)
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... नई देहली रात्रि १० वजे ४-३-४६
आज के लिफाफे की पहुंच अवश्य लिखें। किसी अन्य के हाथ से डाक में पड़ा है- -
१. त्रियम्बकं, बौधायन गृह्य शेष सूत्र ३।१२।। पृ० २६६ २. त्रियहे पर्यवेतेऽथ-बौ० गृ० शेष ५।२।। पृ० ३६२
त्र्यहे के स्थान में. प्रातः ५-३-११ बजे २५ पृष्ठ तक की प्रेस कापी भेज रहा हूं। लौटती डाक पहुंच लिखें। रजि० भेजी है ।
पूर्ण शुद्ध कर अन्तिम प्रूफ मुझे भेजें। स्वयं भी पढ़ लें। अपने 2 छपे फार्म भेजें।
भ०दत्त २५ लौटाया कार्ड मिल गया। प्रेस कापी में एक पृष्ठ अधिक है, जो
आप के पास पहले था, उसे ठीक कर लें।