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ग्यारहवां परिशिष्ट
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(३१) श्री पं० पद्मनाभ राव जी के पत्र
श्री परम सुहृद् पण्डित बी० एच० पद्मनाभ राव जी के साथ मेरा पत्रव्यवहार सन् १९५६ में प्रारम्भ हुआ था । उस समय मैं ऋषि दयानन्द की जन्मभूमि 'टंकारा' (सौराष्ट्र) में 'दयानन्द शोध-विभाग के अध्यक्ष पद पर ५ कार्यनिरत था। श्री माननीय पण्डित जी अनेक शास्त्रों के तलस्पर्शी विद्वान् हैं। . . आपके साथ पत्र-व्यवहार प्रायः शास्त्रीय विषयों पर ही होता है । आपके द्वारा प्रेषित पत्रों की संख्या तो बहुत अधिक रही, परन्तु उनमें से १०-१२ विशिष्ट पत्र ही मेरे पास सुरक्षित हैं। उनमें से जिन पत्रों में प्रापने 'संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास' ग्रन्थ के विषय में उपयोगी सुझाव वा सामग्री १० प्रस्तुत की हैं, उन्हें मैं नीचे दे रहा हूं॥श्रीः ॥
Atmakur Kurncol
10-11-63 १५ श्रीमन्तः पण्डिताग्रण्या मीमांसकमहोदयाः !
नमोनमः । भवत्प्रहितं पुस्तकचतुष्टयं समासादितम् । धन्यवादास्तदर्थम् । अपिनाम कुशलमत्र भक्तां कारुण्येन कमलासहायस्य, सं० व्या० इतिहासस्य तृतीयभागस्य प्रचुरणं भवेदिति विज्ञाय तत्र सन्दर्भे किमपीदमुपयोगाय कल्प्यत इति निम्नोद्धृतं प्रहितं २० भवति । ज्ञात्वेदं भवन्त एव मानम् ।।
(१) श्रीमदुत्तरादिमठाधीशैः श्रीसत्यप्रियतीर्थस्वामिभिः (क्री० १७३७-१७४४) महाभाष्यस्य विवरणं विरचितम् । (हस्तलेखोऽस्ति)
(२) साताराग्रामवास्तव्य राघवेन्द्राचार्यगजेन्द्रगढ़कर् इत्येतेः ( त्रिपथगाकारैः ) महाभाष्यस्य व्याख्या विरचिता । कालश्चैषां २५ निश्चित एव ।
(३) गोदावरीतारस्यधर्मपुरीनिवासिभिरान्धेषु लब्धजन्मभिः छलारीनरसिंहाचार्यैः शाब्दिककण्ठमणिरिति भाष्यव्याऽकारि । जीवनसमय एषां ससदशशतकस्यपश्चार्द्धभाग इति तु निर्विवादम् ।