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ग्यारहवां परिशिष्ट
पूर्वेषां वतुर्णां गृह्णन्तीमुपयच्छेत् । गो० गृ० सू० २|१|७|| गृह्णतीम् इति प्राप्ते गृह्णन्तीमिति छान्दसोऽयं प्रयोगः । भट्ट
नारायण भाष्य
वेद और ब्राह्मण में ऐसे प्रयोग देखें । पूरा विचार कर टिप्पण लिखें । कातन्त्र देख लें ।
प्रक्षाल्य वैनेनोद्धृत्य - एनेन - छान्दस प्रयोग -
कल कागज पूछने जाऊंगा । रुपया ५०० ) आ चुका है । और ना रहा है । अब ग्रन्थ छपेंगे। ग्रन्थ अति सुन्दर बनाए । पुस्तकें अभी न लें । कुछ काल पश्चात् एकत्र रह कर काम करेंगे । शाकटायन का प्रमाण वर्ता या नहीं । पूरा उत्तर लिखें ।
श्री पण्डित जी,
( १५ )
अथ
भगवद्दत्त
नई देहली
१७-१०-४८
नमस्ते । पोस्टकार्ड मिला था । धन्यवाद । यत्तक्तविरुद्धार्थं शाकटायनवचनम् - जलाग्निभ्यां विपन्नानां संन्यासे वा गृहे पथि । श्राद्ध कुर्वीत तेषां वै वर्जयित्वा चतुर्दशीमिति ।
१४ε
चतुर्वर्ग चिन्तामणि, श्राद्धकल्प, हेमाद्रिकृत ऐशियाटिक सो० संस्करण, पृ० २१५ । स्मृति चन्द्रिका में भी शाकटायन है । ध्यान करलें 1.
भगवद्दत्त
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कापी लिखनी प्रारम्भ करें । ग्रन्थ को प्रति श्रेष्ठ बनाएं' । वेमकशाला पुनः भेजूंगा । स्वाध्याय से सूचित करते रहें। यह शाकटायन २५ शाखाकारों का साथी निकलेगा ।
यहां कुशल है । पत्र लिखते रहा करें। 1