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________________ . १४८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास (१३) अमृतसर १६.६.४८ प्रिय पण्डित युधिष्ठिर जी, नमस्ते । आपका पोस्ट कार्ड मिल गया था। मैं आपको विस्तृत लिफाफा लिख चुका हूं। १. ऋकतन्त्रं सामतंत्रञ्च संज्ञाकरणमेव च । . धातुलक्षणकञ्च स्यादिति व्याकरणानि च । गो० गृह्य. भट्टनारायण भाष्य सहित-टिप्पणी पृ० ६०३,६०४ १० २. एक कौत्स गो० गृह्यसूत्र ३।१०।४ में स्मृत ३. प्रभुञ्जति ब्राह्मणे। कौषीतकगृह्य ३।६।४४॥ इस पर भवत्रात भाष्य में अभञ्जतीति किमेतद्रपमः। ननु शत्रन्तं न भवति । परस्मैपदत्वात् । भुजोऽनवने इति ह्यात्मनेपदविधानम् । नैष दोषः। छान्दसमेत पम् । १५ छन्दोवत्सूत्रम् । अभुक्तवतीति वा पाठः । ऊपर' के प्रमाण यदि काम में पा सकें, तो उन से काम लें। मैं २८ ता० मंगलवार को प्रातः देहली पहुंचंगा। आप किस तिथि तक पाएंगे। इस पत्र का उत्तर देहली भेजें। मनीआर्डर देहली पहुंचा है। मैं जा कर लूगा। इतिहास प्रतिदिन लिख रहा हूं। सत्या२० षाढ़ का प्रमाण कभी पढ़ा था। अब सर्वथा विस्मरण था। कल्पसूत्रों का इतिहास भी लिख रहा हूँ। २० पृष्ठ की रूप रेखा बना ली है। जो प्रमाण मिले एकत्र करें और लिखते रहें। बच्चों को प्यार । भ० दत्त (१४) १६-११-४८ राणायनीयानाम् ऋक्तन्त्रे प्रसिद्धा विसर्जनीयस्य अभिनिष्ठानाख्या इति । गोभिल गृह्य, भट्ट नारायण भाष्य २।८।१४॥ १. यहां छापे गये प्रमाण, पत्र में पत्र प्रारम्भ करने से पूर्व लिखे हुए हैं। २५
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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