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ग्यारहवां परिशिष्ट'
१४७ उद्धृत भारतीय विद्या-वर्ष ३. अक १. पृ० २३२..
दुर्ग की निरुक्त टीका में भी देखें । अष्ट व्याकरणों के होने की बात कब से चली । यदि दुर्ग में भी हैं तो पूज्यपाद और जैन शाकटायन नहीं गिने जाएंगे।
मैंने आप को पहले भी एक ताम्रपत्र अथवा शिलालेख से एक ५ बात भेजी है। अब सारा प्रकरण, दोबारा लिखियें। भागवृत्ति के उद्धरण नहीं पाए । उत्तर भी नहीं आया।'
आपका
भगवद्दत्त
(१२) प्रियवर पण्डित जी' .
नमस्ते । ऊपर के नए टिप्पणों पर विचार करें। पाणिनि ही बौधायन आदि में वर्णित है । उस का काल विक्रम से २७०० वर्ष पूर्व पड़ने को प्राशा है। शौनक से कुछ पीछे पर उस का समः कालीन ।
बौधायन श्रौत -प्रवरे ३
भृगणामे वादितो व्याख्यास्यामः... .."पैङ्गलायना.......... वैहीनरयः .........."काशकृत्स्नाः 'पाणिनिर्वाल्मीकि............प्रापिशलयः......"॥३॥ __ ज्यायान कात्यायन:-बौधायन श्रौ० २३।७।। सारा पाठ पढ कर २० तुलना करें, यदि कात्यायन के किसी ग्रन्थ में यह भाव मिले।
लौक्यं =बौ० श्रौ० १७१८॥ लौक्यं-वेदमन्त्र में भी है। पाणिनीय प्रयोग लौकिकं है।
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१. दुर्ग निरुक्तवृत्ति (१।१३) में 'ध्याकरणमष्टप्रभेदम्' पाठ है। प्रा. नन्दाश्रम संस्क० पृष्ठ ७४ ।
२. इससे आगे का पत्र भाग ग्रन्थ से सम्बद्ध न होने से छोड़ दिया है। ३. इस पत्र पर तिथि निर्देश नहीं है। ४. अगली टिप्पणी देखें।
५. पत्र में इससे आगे छपा अंश पत्र के प्रारम्भ में लिखा हुप्रा है। इस पत्र का प्रकृत ग्रन्थ से संबद्ध अंश ही यहां दिया है, शेष छोड़ दिया है।