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ग्यारहवां परिशिष्ट
१४५ कितना उत्तम हुआ। १५२ पृष्ठों' में कितनी मौलिक सामग्री बढ़ी। जानने की उत्सुकता है।
भ० दत्त (१०)
प्रोम्
Shri Satya Shrava Central Asian Museum
Queensway New Delhi
२२८-४८ प्रियवर पं० युधिष्ठिर जी,
नमस्ते । मेरी लिखी सब टिप्पणियां उसी समय मूल प्रति पर सुरक्षित कर लिया करें। आपका लिफाफा नहीं मिला था।
"देवमीमांसा दैवतकाण्ड माध्वाचार्य के अनुसार शेष और पैल का है। दोनों बादरायण के शिष्य थे। माधव ने दैवतकाण्ड के दो सूत्र उद्धृत किए हैं। ये बादरायण के कारण मूल ग्रन्थ में जोड़े १५ गए । ये दोनों वेदान्तदेशिक ने शतदूषणी में दिए हैं । मुद्रित ग्रन्थ में ये नहीं मिलते। तत्त्वरत्नाकर में बादरायण के शिष्य काशकृत्स्न को दैवतकाण्ड का कर्ता लिखा है।": ग्यारहवीं अखिल भारतीय ओरिएण्टल कानफ्रेंस हैदराबाद, क्या आप छाप लेंगे। अब सायं ४ बजने लगे हैं । सायं को गाड़ी पूना जा रहा हूं। श्री बावा जी का काम है। २० उत्तर दे छोड़े । २६ तक लौट पाऊंगा। भ० दत्त ।
१९४१. पृ० ८५, ८६, लेखों के संक्षेप लेखक B. A. Krishna Swamy Rao, मैसूर."
काशकृत्स्न के काल का कुछ पता यहां से चलेगा। पूरे प्रमाण देख कर प्रा टिप्पण लिख लें। अथवा मूल में समाविष्ट करें। बच्चों १ का स्वास्थ्य लिखें। सरकार से कागज खूब मिलने की आशा है । बड़े अधिकारियों से मिला हूं।
१. यह पृष्ठ संख्या लाहौर में मुद्रित सं०व्या० शास्त्र का इतिहास' की है। वहां इतने ही पृष्ठ छपे थे। जो वहां देशविभाजन के समय नष्ट हो गये थे।