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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
c/o Shri Satya Shrava M. A. Central Asian Museum
Queensway New Delhi
२५-७-४८ प्रियवर श्री पण्डित युधिष्ठिर जी;
बहुत २ नमस्ते। आपका १७ का कार्ड यथा समय मिला। यहां सत्यश्रवा की धर्मपत्नी और तत्पश्चात् सत्यश्रवा रोगी १० हुए, अतः पूना नहीं जा सका । अब ठीक हो रहे हैं। दो चार दिन तक पूना जाऊंगा। पुनः अमृतसर जाऊंगा।
कागज का प्रबन्ध कर सकूँगा। थोड़े दिन में उत्तर दूंगा। श्रेष्ठ छपाई करा लें, तो अच्छा है।
ऐपि० इण्डि० १५,१६ Vol. मेंनरेन्द्रसेन वैयाकरण-प्रमाणप्रमेयकलिका का कर्ता
नरेन्द्रसेन का गुरु कनकसेन, इसका गुरु अजितसेन । नरेन्द्रसेन ने 'चान्द्र, कातन्त्र, जिनेन्द्र शब्दानुशासन, ऐन्द्र और पाणिनि पर अधिकार किया । वह शक ६७५ में हुआ।
भागुरेः लोकायतिकस्य' लोकायति[क] पर मेरा सन्देह था
कल पण्डित ईश्वरचन्द्र जो ने काशिका के चार्वो शब्द पर विवरणपञ्जिका में
ब्रह्मगार्यप्रणीतं लोकायतशास्त्रम् पाठ बताया । यह शास्त्र राजनीति पर होगा । नास्तिकता पर नहीं । नोट करलें । और बड़ी बातें २५ पढ़ चुका हूं। 'दिव्यं वर्षसहस्र' का अर्थ अवश्य लिखें।
उत्तर लौटती डाक दें। मूल ग्रन्थ कितना दोहराया है। पहले से १. इस विषय में सं० व्या० इ०' भाग १, पृष्ठ १०५, टि० १-२ देखें । २. यह पद काशिका १॥३॥३२ तथा ३६ में प्रयुक्त है। ३. यह पाठ विवरणपन्जिका (न्यास) में १।३।३२ तथा ३६ पर नहीं है ।