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________________ ૪૨ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास इसी प्रकार सूक्ष्म दृष्टि से धातुवृत्तिः पढ़ कर आप पौर्वापर्य निश्चित करें । अन्य ग्रन्थों में भी प्रापिशलि देखें । विदुरनीति का अनुवाद छपेगा वा नहीं । मैं इतिहास की शुद्धि लिपि कर रहा हूं । और ज्ञातव्य बातों से सूचित करें । म्लेच्छ भाषा के प्रमाण निकाले ५ या नहीं । क्या यहां आने का विचार कर सकेंगे । प्रतीत होता है, हमें यहाँ रहना पड़ेगा । सत्यश्रवा की सगाई वहां हो गई विवाह मई में होगा । १५ प्रोम् २५ (७) भ० दत्त प्रियवर पण्डित जी ; 1 नमस्ते । श्रभी पहले पत्र का उत्तर नहीं आया । ऋक्प्रातिशाख्य में गार्ग्य और शाकटायन दोनों उद्धृत हैं । शाक० तीन वार—सारे उद्धरण दें। बृहद्देवता में उद्धृत शाक० के साथ यह उल्लेख भी करें । काल के लिए आवश्यक है । ऋक् प्राति० ( (डा० २० मंगलदेव वाला) पदकार पृ० ३८४ पर ध्यान से देखें । 'शाकटायन के सारे उद्धरण एकत्र करके उसके व्याकरण के स्वरूप पर लिखें । ग्रन्थ का बहुत परिमार्जन करें । श्रद्वितीय बनाएं। आर्यसमाज लछमनसर अमृतसर १६-३-४८ यहां शान्ति है | सब लोग आपको यहां बुलाना चाहते हैं । निश्चय करलें । और सब कुशल है । भ० दत्त मैं कुछ काल तो यहाँ रहूंगा । आप विचार लें। यहां भय व किसी प्रकार का नहीं है । यहां १. यह पङक्ति पत्र के ऊपर रिक्त स्थान में लिखी है । हमने इसे रखा है ।
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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