________________
। ग्यारहवां परिशिष्ट
१४१
नई देहली:
रात्रि १३०२०४८ न्यथैः-कुरङ्गसदृशो विकटबहुविषाणः
ये वराह आदि दश महामृग हैं। अष्टाङ्गहृदय सूत्रस्थान अध्याय ६॥५०॥ हेमादि टीका [प्रागे का अंश छोड़ा]
भगवद्दत्त
ओ३म्
Arya Samaj Lachmansar Amritsar १०-३-४८
१५ प्रियवर पण्डित जी
नमस्ते। आपका २-३-४८ का पत्र यहां को मिला था। दूसरा ग्रन्थ एप्रिल में दे दें। अन्यत्र भी कोई प्रति बेचने का यल करें। श्री म. लालचन्दजी ने अभी पूरी बात नहीं बताई। अभी वी. पी. न भेजें।
आत्रेय में भवभूति माधवीया धातुवृत्ति पृष्ठ २३३ पारायण से सुधाकर उत्तरवर्ती-- पृ० २५४ आपिशलि--
पृ० ३२६
पृ० ३५६ यही स्थान आपने अब देखा है।
पृ० ३५६ देखें । क्या काश्यप का व्याख्यान आपिशलि पर था। विचार लें।
सुधाकर से भट्टि पहिले - पृ० १२० प्रात्रेय भट्ट का स्मरण करता है पृ० ३०८