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१४० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ___ मामराज जी..........मुझे चित्रों के सम्बन्ध में कुछ नहीं बताया............."ल यही पता था कि वे स्वयं सब............... रहे हैं । मुझे मिल कर ......""कुछ न.........."। १५ दिन में
एक पत्र अवश्य देते रहे।..."--..."स्वास्थ्य लिखें। ५. क्या पत्रों के अन्य फारम आप को मिले या नहीं।
. भगवद्दत्त
प्रोम्'
९ सी माडल टाऊन
लाहौर
रात्रि २६-१०-४५
प्रिय युधिष्ठिर जी,
नमस्ते-जैन पुस्तक प्रशास्ति संग्रह में कुछ व्याकरण ग्रन्थ १५ भी हैं । कातन्त्र पर भी कुछ लेख हैं । वर्णन लम्बे हैं अतः लिखने का
समय नहीं । टिप्पणि सुरक्षित रखें। देख कर उपयोगी भाग ले लें। सब कुशल । सबको नमस्ते।
भगवद्दत्त कातन्त्रवृत्तिविवरणपंजिका, कातन्त्रोत्तर अपरनाम विद्यानन्द व्याकरण
पुस्तकालय में कुछ आवश्यक पुस्तकें खरीदने के लिये एक सूची बनाई थी। जिस पर पण्डित भगवद्दत्त जी ने हस्ताक्षर किये थे। उसी की ओर यह संकेत है। पृष्ठ १३६, पं० ८ में भी इसी ओर संकेत है।
- १. इस पत्र को भूल से मेरा पता लिखे विना ही पोस्ट बाक्स में छोड़ २५ दिया गया। वह डेडलेटर आफिस में घूमता हुआ ३ नवम्बर १९४५ को
वापस श्री पं० भगवद्दत्त जी के पास पहुंचा । मेरे पास कब और कैसे पहुंचा; यह स्मरण नहीं।