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________________ ३/१८ ग्यारवां परिशिष्ट १३७ भगवद्दत्त जी से महती सहायता प्राप्त हुई । सं० १९६९ (सन् १९४२) के मध्य से सं० २००२ के अन्त (सन् १९४६ के अप्रेल) तक अजमेर में रहा । तत्पश्चात् देशविभाजन के काल तक लाहौर में रहने के अनन्तर पुनः अजमेर माया (विशेच द्रष्टव्य प्रथम भाग के प्रारम्भ में प्रथम संस्करण की भूमिका पृष्ठ ९-१० तथा १३-१४) । दोनों बार अजमेर निवास के काल में स्व० श्री पं०भगवद्दत्त जी से बराबर पत्र-व्यावहार होता रहा और वे व्याकरण शास्त्र के इतिहास के लिये उपयोगी सामग्री पत्र द्वारा उपस्थित करते रहे । उनके दोनों बार अजमेर निवास के लगभन ५ वर्ष के काल में पचासों पत्र मुझे प्राप्त हुए, उनमें से उनके कतिपय पत्र ही मैं कथंचित् सुरक्षित रख सका। उन पत्रों में से जिन पत्रों १० में प्रस्तुत इतिहास के लेखन के लिये विशेष प्रमाण वा सुझाव दिये गये हैं। उन्हें पूर्ण अथवा अंशरूप में नीवे दे रहा हूं। (१) *ओ३म्* Vedio Research Institute, 9 c, MODEL TOWN (Lahore) Bhagavad Datta B. A. Editor-in-Chief og of History of India, (Fifteen Vols.) Dated ७-८-४५ प्रियवर पण्डित युधिष्ठिर जी: ___ नमस्ते । आप का पत्र दुकान पर से घूम रहा है । अभी मिला २० नहीं । १५ नए पत्र' मिले हैं। अभिसन्धिर्वञ्चनार्थः इति धातुसंग्रहः। मालतीमाधव पर जगद्धरटीका अंक १ तदुक्तं त्रिलोचनपञिकायाम् निपाताश्चोपसर्गाश्च श्चेति ते त्रयः। १. अर्थात् स्वामी दयानन्द सरस्वती के पूर्व प्राप्त पत्रों के अतिरिक्त १५ नये पत्र मिले हैं। यु० मी०
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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