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________________ दसवां परिशिष्ट १३३ ,, पृष्ठ २०७, पं० १ २– शन्तनु यहां २ - शान्तनवः पाठ होना चाहिये। आगे भी इस सन्दर्भ में 'शन्तनु के स्थान में 'शान्तनव' पाठ जानना चाहिये। फिट् सूत्र आचार्य शान्तनव प्रोक्त हैं. इसका निर्णय आगे 'फिटसूत्रों का प्रवक्ता श्रौर व्याख्याता' नामक २७वें अध्याय में पृष्ठ ३४६-३४९ तक किया है । पृष्ठ २७४, पं० ८ ‘१– शन्तनु ' यहां भी '१ - शान्तनव...' पाठ होना चाहिये । द्रष्टव्य पृष्ठ २०७, पं० १ का संशोधन । पृष्ठ ३५६, पं० १२ के आगे नया सन्दर्भ बढ़ावें - ६ - रामचन्द्र शेष (सं० १७०० के लगभग ) शेषकुलोत्पन्न नागोजी के पुत्र रामचन्द्र ने स्वरप्रक्रिया नामक १० एक ग्रन्थ लिखा है । इसमें पाणिनीय अष्टक के स्वरविषयक सूत्रों की व्याख्या के साथ ही फिट् सूत्रों की भी व्याख्या की है । रामचन्द्र ने स्वरप्रक्रिया की स्वयं व्याख्या भी लिखी है । यह ग्रन्थ प्रानन्दाश्रम पूना से सन् १९७४ में छपा है । यह ग्रन्थ जिस हस्तलेख के आधार पर छपा है, उसके अन्त का पाठ इस प्रकार १५ है इति शेषकुलोद्भवनागाह्वयपण्डितसूनु रामचन्द्रपण्डित विरचिता स्वरप्रक्रिया समाप्ता । संवत् १८१४ फाल्गुण बदि ।। २८०० । इदं पुस्तकं जावडेकर शिवरामभट्टानाम् । इति शेषकुलोत्पन्नेननागोजी पण्डितानां पुत्रेण रामचन्द्रपण्डितेन २० विरचिता स्वरप्रक्रिया व्याख्या समाप्ता ॥ सं० १८१५ इदं शिवराम भट्ट जावडेकराणाम् । संख्या २६०० ॥ काल - उपरि निर्दिष्ट संवत् १८१४ तथा १८१५ जावडेकरशिवराम भट्ट की पुस्तक की प्रतिलिपि का है । स्वरप्रक्रिया और उसकी व्याख्या में भट्टोजिदीक्षित से प्रवरकालीन ग्रन्थकार का उल्लेख २५ न होने से यह निश्चय ही विक्रम की १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से अर्वाचीन नहीं है । मूल ग्रन्थ के अन्त में लिखित 'संख्या २५००' और व्याख्या के अन्त में निर्दिष्ट संख्या २६०० ' ग्रन्थपरिणाम सूचक है । अर्थात् क्रमश: ये २८०० और २९०० अनुष्टुप् श्लोक परिमित हैं । ३०
SR No.002284
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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