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पृष्ठ १०५, पं० २३ 'उत्तरकालीन हैं ।' से श्रागे पाठ बढ़ावें - 'पुरुषकार पृष्ठ १४, पं० १२ में एकपाठ है - यथादेवमेव च मैत्रेयः । इससे प्रतीत होता है कि मैत्रेय देव से उत्तरवर्ती है । परन्तु पुरुषकार के पूर्व उद्धृत तीन पाठों से स्पष्ट है कि देव मैत्रेय का अनुसरण करता है | अतः 'यथादेवमेव च मैत्रेयः' का तात्पर्य दोनों की समानता मात्र १० ० दर्शाने में है, अन्यथा स्ववचन विरोध होगा ।
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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
'१४' संख्या के स्थान में '१५ ' ; पृष्ठ १०७, पं० २८ में ' १५' संख्या स्थान में '१६' ; पृष्ठ १०९, पं० १८ में '१४' संख्या के स्थान में '१७' और पृष्ठ ११०, पं० ५ में '१५' संख्या के स्थान में '१८' संख्या होनी चाहिये ।
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पृष्ठ ११३, पं० २६-२७-२८ में क्रम संख्या १६-१७-१८ के स्थान में १९-२० -२१ तथा पृष्ठ ११४, पं० १-२-३ में क्रम संख्या १६-२० - २१ के स्थान में २२-२३-२४ होनी चाहिये ।
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पृष्ठ १३८, पं० ५ ‘१८ मलयगिरि-' के नीचे बढ़ावें 'मलयगिरि ने अपने धातुपाठ पर स्वयं धातुपारायण नाम्नी व्याख्या लिखी थी । यह सम्प्रति अनुपलब्ध है ( द्र० भाग १, पृष्ठ ७०२, पं० १८)।"
पृष्ठ १४८, पं० १६ ‘२. शन्तनु" यहां २. शान्तनव...' पाठ होना चाहिये । आगे भी सर्वत्र 'शन्तनु' के स्थान में 'शान्तनव' पाठ २० होना चाहिये । द्र० पृष्ठ १३४, पं० १-६ के सन्दर्भ में किया गया संशोधन ( पूर्व पृष्ठ १२५ पं० २१-२५) ।
पृष्ठ १९४, पं० १२ के आगे सन्दर्भ बढ़ावें—
१६. मलयगिरि (सं० १९८८ - १२५० वि० )
मलयगिरि आचार्य ने स्वीय शब्दानुशासन से सम्बद्ध 'गणपाठ ' २५ का प्रवचन भी किया था । यह सम्प्रति अनुपलब्ध हैं ( द्र० भाग १, पृष्ठ ७०२, पं० १८ ) ।
पृष्ठ १६४, पं० १३ ‘१६. क्रमदीश्वर' - मलयगिरि कृत गणपाठ का विवरण जोड़ने से यहां ' १६' संख्या के स्थान में '१७' संख्या होगी । श्रागे भी इसी प्रकार एक संख्या का परिवर्धन होगा ।